हमारी भारतीय संस्कृति में व्रत और त्यौहार का बड़ा महत्व है और एक ऐसा ही त्यौहार है गणगौर का त्यौहार जिसे सुहागन महिलाये बड़ी ही धुमधाम से मनाती है। दरअसल यह त्यौहार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है और इस दिन तीज माता की सवारी भी निकाली जाती है।
इस बार चूंकि कोरोना को लेकर देश लॉकडाउन है तो मंदिर की बजाय इसकी पूजा घरों में ही होगी और इस बार यह त्यौहार कल मनाया जाएगा। कल नवरात्रों की तीसरी तिथि है। गणगौर शब्द को आप समझे तो यह शिव और पार्वती की और संकेत करते हुए शब्द है।
गण’ और ‘गौर’, गण का तात्पर्य है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। संसार में सबसे सुखी गृहस्थ शिव को कहा जाता है क्यूंकि पार्वती उनके पूर्ण अनुकूल है वही शिव भी उनके पूर्ण अनुकूल है और यही कारण है , इस दिन माता गौरी की पूजा होती है।
इस तिथि का एक और महत्व है, दरअसल सती के आत्मदाह के बाद अगले जन्म में वो पार्वती बनी जिसका जिक्र मानस के बाल काण्ड में है। पार्वती ने मुनि नारद के कहने पर घोर तप किया और शिव को प्रसन्न किया। शास्त्रों का कहना है की वो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया ही थी।
इस दिन विवाहित स्त्रियां इसे अपने पति की मंगल कामना और अखंड सौभाग्य का वरदान पाने के लिए मनाती हैं। इस दिन सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएँ माता गौरी को भेंट की जाती है और अलग अलग प्रथाओं के अनुसार उनकी पूजा की जाती है। इसमें एक और चीज़ बड़ी इम्पोर्टेन्ट है और वो ये की गणगौर का प्रसाद पुरुष को नहीं दिया जाता है।
यह त्यौहार सिर्फ महिलाओं का है और इसमें महिलाएं ही सम्मिलित होती है। वही कुंवारी कन्याओं को इस पूजा को करने के लिए कृष्ण पक्ष की तृतीया से इस दिन तक कठोर व्रत का पालन करना होता है।