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आखिर क्या है शालिग्राम और तुलसी का संबंध ? विष्णु की पूजा तुलसी के बिना क्यों है अधूरी !

By: RNI Hindi Desk 
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आखिर क्या है शालिग्राम और तुलसी का संबंध ? विष्णु की पूजा तुलसी के बिना क्यों है अधूरी !

हमारे वेद पुराणों की माने तो ब्रह्माण्ड की सबसे आखिरी शक्ति श्री हरि विष्णु को ही माना गया है। वेद में तो 1000 मुख वाले श्री विष्णु की आराधना की गई है। भागवत पुराण में जिक्र है कि परीक्षित पर छोड़े गए ब्रह्मास्त्र को सुदर्शन चक्र ने ही विफल किया था।

हिंदू पुराणों में और मान्यताओं में हर पूर्णिमा को श्री विष्णु की आराधना करने की बात कही है। इसके अलावा हर एकादशी को भी श्री विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि विष्णु जी की किसी भी पूजा को बिना तुलसी के सफल नहीं माना जाता है।

इसके अलावा हर घर में तुलसी के पेड़ लगाने और रोज उसकी पूजा करने की मान्यता है। तो आज हम आपको बताते है कि ऐसी कौनसी घटना थी जिसके बाद तुलसी का जन्म हुआ और उसे विष्णु प्रिया कहा गया है।

दरअसल तुलसी पिछले जन्म में एक महिला थी जो की असुर कुल में जन्मी थी। इस जन्म में उसका नाम वृंदा था जो की विष्णु जी की भक्त थी लेकिन उसका पति जालंधर देवताओं से ईर्ष्या करता था क्योंकि देव और असुर हमेशा एक दूसरे के शत्रु रहे है।

वो बड़ा शक्तिशाली था और उसने देवताओं को जीत लिया। इसके बाद थक हार कर देवता विष्णु जी के पास गए और उनसे विनती करने लगे की कैसे भी करके आप इस जालंधर का संहार कीजिए।

वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी और उसका बल ही उसके पति की ताकत थी। यह बार श्री विष्णु जानते थे। वो वृंदा के साथ गलत नहीं करना चाहते थे लेकिन देवताओं की बात को भी नहीं टाल सकते थे।

कुछ समय बाद जब जालंधर युद्ध पर निकला तो वृंदा पूजा में बैठकर उसके लिए प्रार्थना करने लगी। वहीं जब देवता हारने लगे तो श्री विष्णु ने जालंधर के रुप बनाकर महल में प्रवेश किया।

वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो वो पूजा से उठ गई। उधर पूजा अधूरी रहने से देवताओं ने जालंधर का वध कर दिया और जैसे ही वृंदा को इस छल का पता चला उसने विष्णु को श्राप दे डाला।

एक पतिव्रता स्त्री का श्राप खाली नहीं जा सकता है, जैसे ही वृंदा ने श्राप दिया तुरंत विष्णु पत्थर के हो गए। लेकिन देवताओं के विनती करने के बाद वृंदा ने श्राप पुन: वापिस ले लिया।

लेकिन अपने पति का वध होने के बाद उसने स्वयं को जला लिया और उसकी राख से तुलसी का जन्म हुआ। उसकी भक्ति और पति के प्रति इस समर्पण को देखकर श्री विष्णु अति प्रसन्न हुए।

उन्होंने कहा की मैं इस पत्थर में भी रहुँगा और इसे शालिग्राम के नाम से जाना जाएगा वहीं तुलसी के साथ ही इसे पूजा जाएगा। इसके अलावा मेरी किसी भी पूजा में बिना तुलसी के अर्पित किया गया भोग मैं स्वीकार नहीं करुंगा।

इसी के साथ विष्णु और तुलसी का ये मेल हो गया। श्री हरि विष्णु ने एक असुर की पत्नी को भी सम्मान दिया और उसे पूज्य बना दिया, आज भी हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह सम्पन्न किया जाता है।

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