रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में बताया है कि धर्म धन से ज्यादा जरूरी है। कभी भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को हमेशा धर्म के मार्ग में चलना चाहिए। धर्म के मार्ग में चलने वाला व्यक्ति जीवन में मान- सम्मान प्राप्त करता है। धर्म के लिए धन का त्याग करने में कोई बुराई नहीं है।
इसके बाद उन्होने बताया है कि धन से अधिक मूल्यवान प्रेम है। प्रेम के लिए धन को ठुकराया जाने में कोई बुराई नहीं है। आप धन कमा सकते हैं लेकिन किसी का प्रेम नहीं खरीद सकते हैं। व्यक्ति को हमेशा रिश्तों की अहमियत समझनी चाहिए। प्रेम के लिए अगर धन- हानि भी हो जाए तो कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।
आपने नीति शास्त्र में आगे उन्होने बताया है कि व्यक्ति के लिए उसका आत्मसम्मान हमेशा धन से अधिक मूल्यवान होता है। धन कमाने के लिए कभी भी आत्मसम्मान नहीं खोना चाहिए। आप खोया धन प्राप्त कर सकते हैं लेकिन खोए हुए आत्मसम्मान को प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है।