रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। इतना ही नहीं चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि दूसरों को भुगतनी पड़ती है इन 4 लोगों के पाप की सजा, आइये जानते हैं क्या कहा है उन्होने…
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः ।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।।
आचार्य चाणक्य अपने इस श्लोक के बारे में कहते हैं कि किसी भी देश के नागरिकों द्वारा किये गये पाप को वहां के राजा को भोगना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार से राजा द्वारा किये गये पाप के वहां के पुरोहित या मंत्री के भुगतना पड़ता है। और पत्नी द्वारा किए गए पापों को पति और शिष्यों द्वारा किए गए पापों को गुरु ही भोगना पड़ता है। चाणक्य़ ने कहा कि सभी लोग गलत काम से दूर रहे।
आचार्य चाणक्य ने तर्क दिया कि हमें अपने कर्मों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि कई बार हमारे द्वारा किए गए किसी गलत कार्य या पाप की सजा आपसे जुड़े दूसरे व्यक्ति को मिल सकती है। अगर किसी राजा या शासक से कोई गलती या पाप हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी उन सलाहकारों, पुरोहितों या मंत्रियों की है जो राजा को सलाह देते हैं। वहीं उन्होने कहा कि पति के गलत कार्यों की सजा पत्नी को और पत्नी के पाप की सजा पति को भुगतनी पड़ती है।
इसी तरह से गुरु और शिष्य के रिश्ते में भी है। गुरु का कर्तव्य है कि वह अपने शिष्य को सही मार्ग दिखाए। अगर फिर भी शिष्य कोई गलत कार्य या पाप करता है तो उसके कर्मों का फल उसके गुरु को भी भुगतना पड़ता है।