महाभारत में कर्ण एक ऐसा पात्र है जिसका जीवन सबसे उलझा हुआ लगता है। जीवन भर पांडवों से वो बैर रखता रहा लेकिन उसे पता ही नहीं था कि वो उसके ही भाई है। युद्ध में लड़ा भी तो अपने ही भाइयों के विरुद्ध।
दरअसल इस मज़बूरी के पीछे कर्ण के जन्म की कथा है। दरअसल राजा शूरसेन की बेटी कुंती जब बड़ी हुई तो वो खूब साधुओं की सेवा करती। एक बार दुर्वासा ऋषि आये जो की शिव के अंश माने जाते है।
इसके बाद वो उसकी सेवा से प्रसन्न हुए और उसे अमोघ मन्त्र दिया जिससे वो किसी भी देवता को बुला सकती थी। उस मन्त्र को आजमाने के लिए एक बार कुंती ने ऐसे ही सूर्य का आह्वान कर डाला।
कुंती सूर्य को देखकर संकोच में पड़ गयी और सब बाते विस्तार से कह दी। लेकिन सूर्य ने कहा कि मेरा आना असफल नहीं हो सकता और तुम्हे अत्यन्त पराक्रमी पुत्र दूंगा। कुंती भयभीत हुई लेकिन देव वाणी असत्य नहीं हो सकती थी।
समय आने पर कर्ण का जन्म हुआ लेकिन लोक लाज के भय से उसे कुंती ने रात्रि बेला में गंगा में बहा दिया। यही कर्ण धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ को प्राप्त हुआ जब वो अपने घोड़े को पानी पीला रहा था।
कर्ण का जन्म सूर्य और कुंती से हुआ लेकिन बड़ा उसे अधिरथ और राधा ने किया था। कर्ण कवच कुंडल लेकर जन्मा था और सूंदर कान होने के कारण उसका नाम कर्ण हुआ।