शूर्पणखा के बारे में सब लोग एक बात जानते है की उसी ने रावण के सामने माता सीता के सौंदर्य की तारीफ़ कर उसकी बुद्धि को हर लिया था।
उसने रावण से कहा था की भाई तुम यहां अपनी सभा में बैठकर समय बर्बाद कर रहे हो वहां त्रिलोक सुंदरी एक वनवासी के साथ वन में विचरण कर रही है।
जिसको तुम्हारी सभा की शोभा होना चाहिए वो वन में भटक रही है। माता सीता के रूप का ऐसा वर्णन उसने किया की रावण काम के आधीन हो उठा।
उसने सीता को पाने के लिए अधर्म का सहारा लिया और आख़िरकार वो मारा गया। लेकिन क्या आप जानते है कि रावण की बहन शूर्पणखा ने ही रावण को नष्ट करने के प्रण लिया था।
दरअसल रावण की बहन शूर्पणखा का विवाह दानवराज विद्युविह्वा में साथ हुआ था। एक बार त्रिलोक विजय पर निकले रावण ने अपने ही बहन के पति को मार दिया था।
इसका वर्णन आचार्य चतुरसेन के उपन्यास “वयं रक्षां ” में मिलता है। शूर्पणखा पतिव्रता थी।
रावण के उसको किसी और से विवाह करने का प्रलोभन दिया क्यूंकि असुर योनि में एक से अधिक सम्बन्ध स्त्री पुरुष बना सकते है। लेकिन शूर्पणखा ने किसी और से विवाह करने से इंकार कर दिया।
जब उसके पति का अंतिम संस्कार हो रहा था उसी समय शूर्पणखा ने ठान लिया था की रावण का मेरे हाथो ही सर्वनाश हो जाएगा।
उसके बाद वो दण्डक वन में खर दूषण के साथ रहने लगी। जब लक्ष्मण जी ने उनकी नाक काटी तो खर दूषण के साथ उनका युद्ध हुआ। खर दूषण को राम ने चुटकियो में मार दिया।
जब शूर्पणखा ने राम लक्ष्मण का अतुलित बल देखा तो वो समझ गयी अब रावण को यही मार सकते है। रावण कामी था।
इसलिए उसने राम की तारीफ़ करने की बजाय सीता की तारीफ़ की थी। वो जानती थी की सीता पर बात आएगी तो राम कुछ भी कर जायेगे और हुआ भी यही। सीता का हरण हुआ और रावण के कुल का ही विनाश हो गया।