निर्जला एकादशी व्रत ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार 2 जून को एकादशी पड़ रही है।
इस एकादशी को निर्जल व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जिनकी सेवा से मनुष्य के सारे पाप कट जाते है।
गीता में भी कहा गया है कि विष्णु को एकादशी तिथि में ही देखा जाए। ये तिथि विष्णु को प्रिय है उसमे भी निर्जला एकादशी का बड़ा महत्व है।
जो व्यक्ति सच्चे मन के साथ इस व्रत को करता है उसे एक साथ ही सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाता है।
एकादशी तिथि 1 जून को दोपहर 3 बजे से शुरू होकर 2 जून दोपहर 12 बजे तक रहेगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वयं नारद जी ने भी इस व्रत को किया था।
विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा जी की आज्ञा से नारद जी ने इस निर्जल व्रत का पालन किया था जिसके बाद उन्हें विष्णु की भक्ति प्राप्त हुई थी।
कहते है कि तभी से इस निर्जला एकादशी का महत्व और बढ़ गया। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
तांबे के लोटे में जल भरे और उसमे लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य नारायण को जल अर्पित करें। इसके बाद मंदिर जाकर विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करे।
दिन बार निर्जल रहते हुए व्रत करे और शाम को एकदशी की कथा सुनकर व्रत खोले। हो सके तो विष्णु मंदिर में जाकर उनकी प्रतिमा की 108 बार परिक्रमा भी करें।