नई दिल्ली : नवरात्रि में महाष्टमी व्रत या दुर्गा अष्टमी व्रत का विशेष महत्व होता है। जो लोग नवरात्रि के प्रारंभ वाले दिन व्रत रखते हैं, वे दुर्गा अष्टमी का भी व्रत रखते हैं। दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरुप की आराधना की जाती है। माता का रंग अत्यंत गोरा है, इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से पुकारते हैं। शास्त्रों के अनुसार, मां महागौरी ने कठिन तप कर गौर वर्ण प्राप्त किया था। मान्यता है कि मां महागौरी भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं और उनके बिगड़े कामों को पूरा करती हैं।
कैसे करें मां महागौरी की पूजा:-
अष्टमी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर आप स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद हाथ में जल और अक्षत् लेकर दुर्गा अष्टमी व्रत करने तथा मां महागौरी की पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थान पर मां महागौरी या दुर्गा जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर दें। कलश स्थापना किया है, तो वहीं पूजा करें। पूजा में मां महागौरी को सफेद और पीले फूल अर्पित करें। नारियल का भोग लगाएं। ऐसा करने से देवी महागौरी प्रसन्न होती हैं। नारियल का भोग लगाने से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। पूजा के समय महागौरी बीज मंत्र का जाप करें और अंत में मां महागौरी की आरती करें।
भोग-
महागौरी को हलवा का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि माता रानी को काले चने प्रिय हैं।
मां महागौरी की पूजाविधि-
सबसे पहले सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद चौकी पर माता महागौरी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल से शुद्धिकरण करना चाहिए। अब चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) आदि की स्थापना करें।
अब महाष्टमी या दुर्गाष्टमी व्रत का संकल्प लें और मंत्रों का जाप करते हुए मां महागौरी समेत समस्त देवी-देवताओं का ध्यान लगाएं। अब मां महागौरी का आह्वाहन, आसन, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, आभूषण, फूल, धूप-दीप, फल, पान, दक्षिणा, आरती, मंत्र आदि करें। इसके बाद प्रसाद बांटें।
महाष्टमी की पूजा के बाद कन्याओं को भोजन कराना उत्तम माना गया है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां महागौरी शुभ फल देती हैं।
बीज मंत्र: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
अन्य मंत्र:
माहेश्वरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना।
श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।
या
ओम देवी महागौर्यै नमः।
दुर्गा अष्टमी का हवन
कई स्थानों पर दुर्गा अष्टमी के दिन नौ दुर्गा के लिए हवन किया जाता है। आरती के बाद हवन सामग्री अपने पास रखें। कर्पूर से आम की सूखी लकड़ियों को जला लें। अग्नि प्रज्ज्वलित होने पर हवन सामग्री की आहुति दें।
कन्या पूजा 2021
आपके यहां दुर्गा अष्टमी को ही कन्या पूजन होता है, तो आप हवन के बाद 2 से 10 वर्ष की कन्याओं का अपनी क्षमता के अनुसार पूजन, दान, दक्षिणा और भोजन कराएं। उनका आशीष लें। कई स्थानों पर महानवमी के दिन कन्या पूजन की परंपरा है। इसके बाद दिन भर फलाहार रहते हुए दुर्गा अष्टमी का व्रत करें। रात्रि के समय माता का जागरण करें। अगले दिन सुबह नवमी को पूजा के बाद पारण करके व्रत को पूरा करें।