गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल को अदालत से बड़ी राहत मिली है। 2017 के पाटीदार आंदोलन के दौरान दंगे से जुड़े एक मामले में अहमदाबाद के सेशन कोर्ट ने हार्दिक और 20 अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने की मंजूरी दे दी है।
गुजरात सरकार ने पाटीदार आंदोलन के दौरान दर्ज केस वापस लेने का फैसला किया था, लेकिन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने हार्दिक और अन्य के खिलाफ केस रद्द करने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ सरकार सेशन कोर्ट पहुंची, जिस पर अब सेशन कोर्ट ने मुहर लगा दी है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मामला गुजरात में 2017 में हुए पाटीदार आंदोलन से जुड़ा है। वस्त्राल से भाजपा पार्षद परेश पटेल ने 20 मार्च 2017 को रामोल पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। आरोप लगाया कि हार्दिक ने 60-70 अन्य लोगों के साथ भाजपा पार्षद के घर पर अवैध रूप से इकट्ठा होकर दंगा किया, जबरन अंदर घुस आए और हमला किया। भीड़ ने उनके घर पर लगी नेमप्लेट तोड़ दी।
बीजेपी का झंडा जला दिया। गाली-गलौज की और जान से मारने की धमकी दी. शिकायत के आधार पर हार्दिक समेत 21 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120 बी, 143, 149, 147 (दंगा), 435 (आगजनी), 452 (जबरन घुसपैठ) और 294 (ए) और 506 (1) के तहत केस दर्ज किया गया।
इसके बाद इस साल गुजरात सरकार ने पाटीदार आंदोलन के दौरान पाटीदारों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने का ऐलान किया। राज्य सरकार की तरफ से अहमदाबाद की मजिस्ट्रेट कोर्ट के आवेदन देकर हार्दिक व अन्य के खिलाफ केस बंद करने की गुहार लगाई गई. हालांकि मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 25 अप्रैल को केस वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
कहा कि केस बंद करना न्याय और जनहित के लिए ठीक नहीं होगा. मजिस्ट्रेट कोर्ट के इस आदेश को सरकार ने सेशन कोर्ट में चुनौती दी। कहा कि मजिस्ट्रेट का फैसला सही नहीं था और सीआरपीसी की धारा 321 के प्रावधानों के खिलाफ था। सरकार ने ये भी दलील दी कि सेशन कोर्ट इसी तरह के 10 केसों को वापस लेने की इजाजत दे चुकी है।
आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों को देखते हुए किसी मामले से हट सकता है। फैसले की जानकारी देते हुए सरकारी वकील सुधीर ब्रह्मभट्ट ने बताया कि सेशन कोर्ट का मानना था कि ये ऐसा केस नहीं था कि जिसे वापस लेने से इनकार किया जाए।