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दुनिया के सबसे पहले क्रिस्चन देश अर्मेनिया में हर रोज होती एथनिक किलिंग

अर्मेनिया की धरती और इतिहास भी लम्बे समय से युद्ध झेलती आ रही है और आज भी अर्मेनिया और अजरबैजान की सेनाओं के बीच युद्ध जारी है

By RNI Hindi Desk 
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मनु चौधरी की कलम से

आइए आज बात करते हैं दुनिया के सबसे पहले क्रिस्चन देश अर्मेनिया की। हम सभी जानते हैं कि दुनिया के हर देश में या तो बाहरी युद्ध चल रहा है या फिर भीतरी गृह युद्ध। अर्मेनिया की धरती और इतिहास भी लम्बे समय से युद्ध झेलती आ रही है और आज भी अर्मेनिया और अजरबैजान की सेनाओं के बीच युद्ध जारी है जिसकी बात अंतराष्ट्रीय मीडिया में बहुत कम होती है क्योंकि अर्मेनिया अभी भी पूरी तरह से डिप्लोमेटिक लेवल पर दुनिया को समझने में नाकाम रहा है कि उसके यहाँ यह महज दो देशों की सीमाओं का युद्ध नहीं है बल्कि यह एक एथनिक किलिंग है जिसे बड़े सिस्टेमेटिक लेवल पर अजरबैजान द्वारा अन्य देशों की मदद से लड़ा जा रहा है।
आर्मेनिया प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर वाला देश है। आर्मेनिया के राजा ने चौथी शताब्दी में ही ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। इस तरह से आर्मेनिया ईसाई धर्म अपनाने वाला दुनिया का पहला आधिकारिक देश है। यहाँ आर्मेनियाई एपोस्टलिक चर्च सबसे बड़ा धर्म है। इसके अलावा यहाँ कैथोलिक ईसाईयों, मुसलमानों और अन्य संप्रदायों का छोटा समुदाय भी है।
दुनिया का यही पहला क्रिस्चन देश जहां अब खुद क्रिस्चन अल्पसॅख्यक हो चुके है क्योंकि लगातार उनकी एथनिक किलिंग की जा रही है। आर्मेनिया पश्चिम एशिया और यूरोप के काकेशस क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी देश है जो चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा हुआ है। 1990 से पहले यह सोवियत संघ का एक राज्य था। सोवियत संघ के विघटन के बाद राज्यों के आजादी के संघर्ष के बाद आर्मीनिया 23 अगस्त 1990 को एक स्वतंत्रता देश बना लेकिन इसके स्थापना की घोषणा 21 सितंबर, 1991 को की गई और इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता 25 दिसंबर को मिली। यहाँ आप सभी को बताती चलु कि अर्मेनिया की राजधानी येरेवन है। हालांकि अर्मेनिया और अजरबैजान दोनों ही पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे।
आप यह तो जानते ही होगें कि अर्मेनियाई मूल के लोग अपने को हयक का वंशज मानते हैं जो नूह इस्लाम, ईसाईयत और यहूदियों के पूज्य का पर-परपोता था। कुछ ईसाईयों की मान्यता है कि नोआ और उसका परिवार यहीं आकर बस गया था। आर्मीनिया का अर्मेनियाई भाषा में नाम हयस्तान है जिसका अर्थ हायक की जमीन है। हायक ही नोह के पर-परपोते का नाम था। इसी से आप मेरे बिना लिखे भी सहज ही समझ सकते हैं कि असल में अर्मेनिया की धरती किस तरह के युद्ध का सामना कर रही है।
80 ई.पू. में आर्मेनिया राजशाही का विस्तार अर्मेनिया, वर्तमान तुर्की का कुछ भू-भाग, सीरिया, लेबनान, ईरान, इराक, अज़रबैजान तक था। 300 ईसा पूर्व अर्मेनियाई मूल की लिपि आरामाईक भारत से लेकर भूमध्य सागर के बीच काफी व्यापारियों द्वारा प्रयोग की जाती थी। ऐतिहासिक रूप से अर्मेनिया पूर्वी रोमन साम्राज्य, फ़ारस और अरब दोनों क्षेत्रों के बीच होने के कारण मध्य काल से ही यह क्षेत्र विदेशी प्रभाव और अनेक युद्धों को लगातार झेल रहा है। अर्मेनिया ही वह देश है जहाँ इस्लाम और ईसाइयत के कई आरंभिक युद्ध भी लड़े गए थे जो आज भी छदम रूप और आमने -सामने भी जारी हैं ।
अभी दोनों देशों की जनता 2020 में आर्मीनिया और अजरबैजान की सेना के बीच हुए भीषण युद्ध को भुला भी नहीं पाई थी कि पिछले साल भी जब दोनों देशों में युद्ध लड़ा गया था तब अजरबैजान ने तुर्की से लिए गये ड्रोन से आर्मीनिया के कई इलाकों में बहुत घातक बमबारी की थी उसी दौरान अजरबैजान ने नागर्नो-कराबाख के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया है। जहां रूस कई बार दोनों देशों के बीच शान्ति समझौता करवा चुका है वहीं तुर्की और पाकिस्तान लगातार युद्ध भड़काए रखने के लिए अजरबैजान की मदद करते रहते हैं। हालांकि दोनों देशों के विवादित क्षेत्रों में रूसी शांति सैनिक तैनात हैं, फिर भी दोनों देशों में नए सिरे से संघर्ष छिड़ गया है। इसमें कम से कम 7 सैनिक मारे गए हैं और कई अन्‍य घायल हो गए हैं। दोनों देशों के बीच नगर्नो-काराबाख को लेकर विवाद है। उस वक़्त तो रूस ने मध्‍यस्‍थता की और सीजफायर कराया था। हालांकि दोनों देशों के बीच पिछले कुछ महीने में कई बार संघर्ष हो चुका है। रूस के यूक्रेन में फंसने के बाद अजरबैजान ने आर्मीनिया के कब्‍जे वाले कई इलाके पर फिर से कब्‍जा कर लिया है।
गौरतलब है कि हाल ही में आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और अजरबैजान के राष्‍ट्रपति इल्‍हाम अलियेव ने यूरोपीय संघ और अमेरिका की मध्‍यस्‍थता के बाद कई दौर की शांति वार्ता की थी । आर्मिनियाई प्रधानमंत्री ने जहां इस शांति प्रक्रिया में प्रगति की बात कही थी वहीं उन्‍होंने यह भी कहा था कि ‘मूलभूत समस्‍याएं’ बनी हुई हैं। उन्‍होंने आगे कहा था कि इसकी वजह यह है कि अजरबैजान क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा है जो आर्मीनिया के लिए सीमा है।
Copyright Manu Chaudhary ( Ethnic killing happens everyday in the world’s first Christian country Armenia )

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