आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि को नवरात्र के नाम से जाना जाता है, इन नौ दिनों में माता रानी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और उसके अगले दिन यानी दशमी तिथि को दशहरा कहा जाता है।
इस दिन को अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में याद किया जाता है क्यूंकि इस दिन भगवान श्री राम ने असुर रावण का वध किया था। चूँकि रावण से युद्ध से पहले राम जी ने शक्ति आराधना की थी इसलिए आश्विन नवरात्र का महत्व कुछ अधिक ही है।
इस दिन को महिषासुर के वध के रूप में भी जाना जाता है जिसको मारने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने तेज से माँ के दिव्य रूप को प्रकट किया था। माँ के सभी अस्त्र देवताओं ने ही उन्हें दिए थे। इस दिन दुर्गासप्तशती और रामरक्षा स्त्रोत का पाठ करना शुभ रहता है और माना जाता है की इस दिन कोई भी कार्य करने के लिए मुहूर्त देखने की जरुरत ही नहीं है।
इस बार दशहरा 25 अक्टूबर को मनाया जा रहा है और इस बार नवमी और दशहरा एक ही दिन मनाए जा रहे हैं। आपको बता दे कि सुबह 11:14 तक नवमी के सभी पूजन और कार्य पुरे किए जाएंगे और उसके बाद दशहरा पर्व शुरू हो जाएगा, यानी संध्या काल में रावण का दहन होगा।
दशमी तिथि प्रारंभ – 25 अक्टूबर को सुबह 011:41 मिनट से
इस दिन पुष्य नक्षत्र सुबह 6:20 से रात को 1.20 तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 01:55 मिनट से 02 बजकर 40 तक।
रावण एक असुर था और वो ना सिर्फ ज्ञानी था बल्कि एक ब्राह्मण थी लेकिन उसने अपने ज्ञान का गलत फायदा उठाया। शिव का भक्त होने के बाद भी माता सीता को उठाकर ले आया। रावण का दहन हमे यह सिखाता है की कभी जीवन में घमंड नहीं करना है।