कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली द्वादशी को तुलसी का विवाह किया जाता है। माना जाता है कि जो साधक तुलसी जी का विधि पूर्वक विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु के स्वरूप) से करवाता है उसके घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। ऐसे में यदि आप पहली बार तुलसी विवाह करने जा रहे हैं तो पूजा में ये सामग्री शामिल करना न भूलें।
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना गया है, इसलिए उन्हें हिंदू धर्म में तुलसी मां या तुलसी महारानी के नाम से भी पुकारा जाता है। कार्तिक महीने में प्रबोधिनी एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी पर तुलसी विवाह का कार्यक्रम किया जाता है। कुछ साधक देवउठनी एकादशी पर भी तुलसी विवाह करते हैं।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि यानि 23 नवंबर रात 09 बजकर 01 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं, इसका समापन 24 नवंबर, शाम 07 बजकर 06 मिनट पर होगा। ऐसे में तुलसी विवाह 24 नवंबर को किया जाएगा। इस दौरान प्रदोष काल शाम 05 बजकर 25 मिनट से 06 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
तुलसी विवाह के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें। पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई के बाद गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद वहां दो लकड़ी की चौकी रखें और उस पर लाल रंग का आसन बिछाएं।
एक कलश में गंगा जल भरकर उसमें आम के 5 या 7 पत्ते डालें। तुलसी के गमले को गेरू से रंगने के बाद एक आसन पर स्थापित करें और दूसरे आसन पर शालिग्राम जी को स्थापित कर दें।
अब दोनों चौकियों के ऊपर गन्ने से मंडप तैयार कर लें। इसके बाद शालिग्राम और तुलसी जी के सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद तुलसी जी को रोली-कुमकुम से तिलक लगाएं और उसका शृंगार करें।
शृंगार के दौरान तुलसी महारानी को लाल चुनरी भी पहनाएं। इसके बाद शालिग्राम जी को चौकी के साथ, हाथ में लेकर तुलसी जी की 7 बार परिक्रमा करें और अपने परिवार की खुशहाली के लिए कामना करें।
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