रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि समय पड़ने पर ऐसा धन और विद्या नहीं आते हैं काम।
पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु च यद्धनम्
उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम्
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि जो विद्या पुस्तक में रहती है वह व्यक्ति के किसी काम की नहीं रहती है। आचार्य चाणक्य के कहने का अर्थ यह है कि जो ज्ञान केवल किताबों तक सीमित रहता है और व्यक्ति वक्त आने पर उसका प्रयोग नहीं कर पाता है ऐसे ज्ञान का कोई औचित्य नहीं होता है। उन्होने बताया है कि व्यक्ति को गुरु से ज्ञान लेते समय अपनी जिज्ञासा को पूरी तरह से शांत करना चाहिए। आधे-अधूरे ज्ञान का कोई फायदा नहीं रहता है। जब मनुष्य को उस ज्ञान का प्रयोग करने की बारी आती हैं तो पूरी तरह से ज्ञान न होने के कारण वह पीछे रह जाता है।
आचार्य चाणक्य आगे बताया है कि जो धन दूसरों के पास पड़ा है वह किसी काम का नहीं है। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि धन का संचय सदैव अपने पास करके रखना चाहिए ताकि समय पर उसको उपयोग में लाया जा सके। कुछ लोग अपना धन दूसरों को रखने के लिए दे देते है लेकिन ऐसा धन समय पड़ने पर किसी काम का नहीं रहता है। धन के मामले में किसी भी व्यक्ति पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
उन्होने आगे बताया है कि व्यक्ति को सदैव मेहनत और ईमानदारी से ही धन कमाना चाहिए। गलत कार्यों या किसी के साथ छल-कपट करके कमाया गया धन बहुत जल्दी नष्ट हो जाता है और समय पड़ने पर व्यक्ति के किसी काम का नहीं रहता है।