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दशहरे के मौके पर RSS प्रमुख मोहन भागवत बोले- हम सभी से मित्रता चाहते हैं, लेकिन हमारी सद्भावना को दुर्बलता नहीं समझना चाहिए

By RNI Hindi Desk 
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दशहरे के खास मौके पर नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शस्त्र पूजा की। इस पूजा के बाद मोहन भागवत ने आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कोरोना महामारी, चीन के साथ जारी सीमा विवाद, सीएए विरोधी प्रदर्शन और राम मंदिर निर्माण जैसे अहम मुद्दों पर बात की।

मोहन भागवत ने इस दौरान कोरोना से निपटने में भारत की भूमिका की सराहना की। इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘कोरोना महामारी के संदर्भ में चीन की संदिग्ध भूमिका रही, यह तो कहा ही जा सकता है। परंतु अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास किया वह सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है।’

भागवत ने कहा, ‘कोरोना महामारी से भारत में नुकसान कम हुआ है। विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं।’

उन्होंने आगे कहा, ‘अपने समाज की एकरसता का, सहज करुणा व शील प्रवृत्ति का, संकट में परस्पर सहयोग के संस्कार का, जिन सब बातों को सोशल कैपिटल ऐसा अंग्रेजी में कहा जाता है, उस अपने सांस्कृतिक संचित सत्त्व का सुखद परिचय इस संकट में हम सभी को मिला।’

भागवत ने आगे कहा कि भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर, खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया। इससे चीन को अनपेक्षित धक्का लगा है। इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा।

मोहन भागवत ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि हम शांत हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम दुर्बल हैं। अब चीन को भी इस बात को एहसास तो हो ही गया होगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि हम इसके बाद लापरवाह हो जाएंगे। ऐसे खतरों पर नजर बनाए रखनी होगी।

भागवत ने आगे कहा कि  अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी हो गया, फिर उच्चतम न्यायालय ने 9 नवंबर को अयोध्या पर फैसला दिया। संपूर्ण देश ने इस फैसले को स्वीकार किया। 5 अगस्त 2020 को, राम मंदिर की आधारशिला रखी गई। हमने इन घटनाओं के दौरान भारतीयों के धैर्य और संवेदनशीलता को देखा है।

मोहन भागवत ने आगे कहा कि विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं।

उन्होंने आगे कहा इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है।

मोहन भागवत ने आगे कहा कि भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया, इससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगता है। इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा।

श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए।

उन्होंने आगे कहा, “हम सभी से मित्रता चाहते हैं।वह हमारा स्वभाव है।परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले,झुका ले,यह हो नहीं सकता,इतना तो अब तक ऐसा दुःसाहस करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए।”

देश की एकात्मता के व सुरक्षा के हित में ‘हिन्दू’ शब्द को आग्रहपूर्वक अपनाकर, उसके स्थानीय तथा वैश्विक, सभी अर्थों को कल्पना में समेटकर संघ चलता है। संघ जब ‘हिंदुस्तान हिन्दू राष्ट्र है’ इस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती।

वह इन सब विशिष्ट पहचानों को कायम, स्वीकृत व सम्मानित रखते हुए, भारत भक्ति के तथा मनुष्यता की संस्कृति के विशाल प्रांगण में सबको बसाने वाला, सब को जोड़ने वाला शब्द है।

‘हिन्दू’ किसी पंथ, संप्रदाय का नाम नहीं है, किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है।

‘हिंदू’ शब्द के विस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में पिरोकर देश व समाज से बांधने वाला बंधन ढीला होता है। इसीलिए इस देश व समाज को तोड़ना चाहने वाले, हमें आपस में लड़ाना चाहने वाले, इस शब्द को, जो सबको जोड़ता है, अपने तिरस्कार व टीका टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं।

संघ मानता है कि ‘हिंदुत्व’ शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले, उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारना चाहने वाले तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परंपरा का गौरव मन में रखने वाले सभी 130 करोड़ समाज बंधुओं पर लागू होता है।

‘हिन्दुत्व’ ऐसा शब्द है, जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है। संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता। वह शब्द अपने देश की पहचान को, अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है।

शासन-प्रशासन के किसी निर्णय पर या समाज में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय अथवा अपना विरोध जताते समय, राष्ट्रीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकर, संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त हो यह आवश्यक है।

समाज में किसी प्रकार से अपराध की अथवा अत्याचार की कोई घटना हो ही नहीं, अत्याचारी व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर पूर्ण नियंत्रण रहे और फिर भी घटनाएं होती हैं तो उसमें दोषी व्यक्ति तुरंत पकड़े जाएं और उनको कड़ी से कड़ी सजा हो, यह शासन प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए।

आर्थिक और सामरिक रूप से चीन से ऊपर उठना है। हमारे पड़ोसियों के साथ और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सहकारी संबंधों को सुरक्षित करना चीन की विस्तार आकांक्षाओं को बेअसर करने का एकमात्र तरीका है।

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