हमने अक्सर देखा है की समाज में लोग अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए तरह तरह के जतन करते है और कई लोग अपनी इच्छाओं को पूरी करने में सफल भी हो जाते है। इसके बाद जब एक बार वो सफल होते है तो दूसरी इच्छा में लग जाते है और इसी चक्र में इंसान उलझ कर रह जाता है।
कई बार लोग सोचते है कि जो एकाग्रता इंसान अपनी सांसारिक इच्छा के लिए लगाता है वो ईश्वर के लिए क्यों नहीं लगाता है ? क्या भौतिक भोग के चलते इंसान अपना मन ईश्वर में नहीं लगा पा रहा है !
दरअसल अज्ञानता के कारण लोगों का मन ईश्वर में नहीं लग पा रहा है , लोग अपनी सांसारिक इच्छाओं में इतना उलझे पड़े है की उन्हें ईश्वर की और देखने का समय ही नहीं है। व्यक्ति भ्रम में उलझा रहता है और उसे भोग के अलावा कुछ भी नहीं दिखाई देता है।
दरअसल भोग मनुष्य को शरीर और इन्द्रियों का सुख प्रदान करते है और यही उसे अच्छा लगता है। इसको हम ऐसे समझ सकते है की एक बच्चा अपनी माँ का दूध पीकर तृप्त हो जाता है और उसके बाद वो खेलने लगता है।
अगर उस बच्चे को उस समय देखा जाए तो अपने खिलौने को ही वो अपनी दुनिया मान लेता है और उसके छीने जाने पर वो कितना रोता है ! बच्चे को कितना गुस्सा आता है जब आप उससे उसका खिलौना छीन लेते है।
लेकिन जैसे ही उसक मन भर जाता है वो आगे से उस खिलौने को आपको दे देता है और जैसे ही उसे भूख लगती है वो वापिस अपनी माँ के लिए रोने लगता है। दरअसल यही संसार का नियम है।
मनुष्य सांसारिकता और भोग के खिलौने में उलझा हुआ है। अगर ईश्वर में मन लगाना है और एकाग्रता लानी है तो इंसान को सांसारिक इच्छाओं का त्याग करना होता है। इच्छाओं को जब तक छोड़ा नहीं जाएगा तब तक ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
जो सिर्फ भोग को ही जीवन का लक्ष्य मानता है उसका मन भी पूजा पाठ में नहीं लगता है और ना ही उसके मन को शांति मिल पाती है। ऐसा व्यक्ति अशांत ही दिखाई देता है। इसलिए अगर आप चाहते है की आप अपने जीवन में ईश्वर को प्राप्त करें तो आपको जीवन में इच्छाओं का मोह छोड़कर शांत होना होगा।