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छोटों को हमेशा प्रोत्साहित करना चाहिए ! जामवंत से सीखिए ये बेहतरीन कला

By RNI Hindi Desk 
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जीवन में दो प्रकार की सिचुएशन होती है, एक वो जब आप किसी कार्य को संपादित करने के लिए चुने जाते है और एक वो जब किसी कार्य को आप मैनेज करते है। अब दोनों को किस प्रकार का व्यवहार करना है इसकी सटीक मिसाल सुंदरकांड में है।

इस बात को समझने के लिए प्रसंग में चलते है, जब हनुमान जी और उनके साथ के सभी वानरों को ये पता चला की सीता माता लंका में है तो सब अचरज से समुद्र को देखने लगे। कौन उस पार जाएगा ?

उस समय हनुमान जी एक कोने में बैठे जाते है, जामवंत के द्वारा उन्हें उनका बल याद कराया जाता है और हनुमान जी जामवंत से कहते है कि

जामबंत में पूछहु तोहि, उचित सिखावन दीजहु मोहि।  यानी की आप मुझे बताइये की मैं क्या करुँ ? जामवंत जी कहते है की  एतना करहु तात तुम जाई सीतहिं देखि कहऊँ सुधि आई।

यानी की हनुमान तुम बस माता सीता का पता लगाओ और उनके समाचार लाओ। अब यहाँ हनुमान कार्य को संपादित करने वाले है और जामवंत निर्देश दे रहे है।

जामवंत से निर्देश लेकर हनुमान जी चले, उन्होंने तमाम बाधाओं का सामना किया जिसका जिक्र मानस में किया गया है।

हनुमान जी बुद्धिमतां वरिष्ठम है तो उन्होंने विभीषण की सहायता से उन्हें यानी माता सीता को ढूंढ लिया।

उन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया की जल्द ही राम आएंगे और आपको लेकर जाएंगे। माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि अजर अमर गुणनिधि सूत होहु !

इसके बाद ब्रह्मास्त्र की लाज रखते हुए वो मेघनाद के द्वारा बांधे गए और बड़ी चतुराई से रावण की सभा और उसके महल का आंकलन कर लिया।

पूंछ में आग लगाई गयी तो लंका जला डाली और सारे आयुध भंडारों को चिन्हित कर लिया ताकि युद्ध में ये सूचना काम आए।

देखा जाए तो हनुमान जी ने हर काम एकदम सटीक किया। जो निर्देश उन्हें दिए गए थे उससे बेहतर ही वो करके आये।

लेकिन जब वो वापिस आये तो उन्होंने खुद अपने मुंह से अपनी तारीफ़ नहीं की, उन्होंने अपने साथियों से ये नहीं कहा की देखो मैं ये करके आ गया ! तुम नहीं कर सकते थे मैंने किया।

इसके बाद बारी आती है जामवंत की, जब राम जी को जामवंत मिलते है तो वो राम से कहते है  नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।

उन्होंने कहा की हे प्रभु आज जो हनुमान करके आया है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। जिसने कार्य पूरा करने के निर्देश दिए थे उसने समय आने पर सबके सामने उस कार्य को संपादित करने वाले की तारीफ़ की।

इसके बाद तुलसी ने लिखा की सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए। यानी श्री राम ने हनुमान जी को गले से लगा लिया। इस पुरे प्रसंग का अर्थ यह है की जब आपके गुणों की तारीफ़ जब कोई और करता है तो उसका मोल बढ़ जाता है।

दूसरा ये की जब भी आपको कोई कार्य मैनेज करना है तो सबसे बेस्ट को चुने और जब वो कार्य को पूरा करे तो उसे उचित सम्मान दे ताकि वो आगे भी और बेहतर कार्यों को संपादित करें। जो अपने से छोटों को श्रेय नहीं देता वो ज्ञानी नहीं हो सकता है।

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