{ श्री अचल सागर जी महाराज की कमल से }
विधाता जो लिखता है वो सब कर्मो के अनुसार लिखता है और उसी के अनुसार मनुष्य की आयु निर्धारित होती है।
मनुष्य के भाग्य में जो लिखा है वो सब भोगता हुआ जीवन से मरण तक मनुष्य इस संसार में रहता है और उसके बाद मृत्यु को प्राप्त करता है।
ना जाने कितनी योनि में भटकने के बाद इंसान को मनुष्य शरीर मिलता है। कई तो पूरा जीवन जी भी नहीं पाते है।
लेकिन हमारे वेद पुराण कहते है कि हम अगर चाहे तो अच्छे कर्म करने के बाद इंसान का शरीर दोबारा पा सकते है।
इन जीवन में मृत्यु का क्या कोई निर्धारित समय है ? नहीं ! आपको पता ही नहीं कब आपके साथ क्या हो जाए ! तो भी हम उस सर्व शक्तिमान से बड़ा खुद को समझते है।
ज़रा सी धन दौलत आ जाती है तो हम अपने आप को बड़ा समझते है। लोगो को सताने लगते है और उसी ईश्वर के अंश का अपमान करने लग जाते है।
इस जीवन में जो भी मिला है उसे खुशनुमा तरीके से जीना चाहिए और कभी भी हिंसा नहीं करनी चाहिए। किसी को बरगलाना नहीं चाहिए।
ईश्वर एक है बस उसका नाम अलग अलग लोग जानते है। कोई राम कहता है तो कोई रहीम कहता है। एक ही जीवन है इसे दूसरों की सेवा करते हुए जियो।