आज के समय में हर इंसान को अपनी तारीफ़ सुनने का शौक है, चापलूसी से आज के समय में कहते है की कोई भी काम निकल सकता है लेकिन जो व्यक्ति चापलूसों से घिरा रहता है वो कभी भी जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता है। जब भी आपकी कोई तारीफ़ करे तो आपको उस समय आत्मअवलोकन करना चाहिए की कही ये ऐसा स्वार्थवश तो नहीं कर रहा है।
अपनी तारीफ़ में सच को तलाशना बहुत जरुरी है। आप आज किसी मुर्ख कह दीजिये की आप बड़े विद्वान है तो उसे ऐसे लगेगा जैसे फूल झड़ रहे है क्यूंकि उससे तो आज तक किसी ने ये कहा ही नहीं था। लेकिन उसे आप मुर्ख कहिए तो ऐसा लगेगा की जैसे किसी ने पत्थर फ़ेंक दिया हो।
दरअसल एक साधारण मनुष्य और ज्ञानी में यही अंतर् है, दोनों का सच एक ही होता है लेकिन उसे देखने और समझने का तरीका बदल जाता है। इस रामायण के एक प्रसंग के माध्यम से समझा जा सकता है। जब हनुमान और रावण आमने सामने हुए तो रावण को हनुमान जी ने बड़ा जोर का मुक्का मारा।
रावण एक बार तो हिल गया, वो उठा और वो हनुमान जी की तारीफ़ करने लगा, लेकिन हनुमान जी जानते थे की मेरी तारीफ़ करके मुझे उलझाना चाहता है ताकि स्वयं वार कर सके। हनुमान जी ने उससे कहा की रावण मेरी झूठी तारीफ़ मत करो, मेरा प्रहार तुम्हे मार नहीं पाया मुझे तो इसका दुःख है ,शायद मैं ही कमजोर था।
इस प्रसंग से हमे ये सीख मिलती है की हमेशा अपनी तारीफ़ में सत्य को ढूंढे और आलोचना में अपनी गलती को क्यूंकि अगर ये कला आप सीख गए तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।