शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए प्रत्येक सरकार प्रयासरत रहती है। पिछले 70 वर्षों में देश की सरकारें कई तरह का वादा करती रही लेकिन देखा जाए तो इस बुरी स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है।
क्यूंकि ऐसा होता तो एक व्यापक बदलाव नज़र आता लेकिन जब आप किसी नौकरी के लिए किसी का इंटरव्यू लेते है तो समझ जाते ही की लोगों के पास डिग्री तो है लेकिन शिक्षा नहीं है।
कई स्कूल कॉलेज के ऐसे बच्चे बच्चियां है जिनको सिर्फ डिग्री दे दी जाती है लेकिन शिक्षा नहीं दी जाती है जिसके कारण वो जीवन की दौड़ में पीछे रह जाते है वहीं सरकार भीं उनकी और ध्यान नहीं देती है।
आज कल तो कई नौकरियों में रिश्वत का चलन भी हो गया है जो कहीं ना कहीं एक समाज के तौर पर हमारी विफलता को दर्शाता है।
अगर देखा जाये तो सरकारें समय समय पर साक्षरता अभियान चलाती ही है लेकिन उसके बाद भी इसका की व्यापक असर दिखाई नहीं देता है।
आज कल तो छोटे छोटे बच्चों को भी ट्यूशन की जरूरत पड़ने लग गयी है जबकि गुरुकुल में ऐसा नहीं था। वहां जो ज्ञान दिया जाता था बच्चे को उसे खुद ही सीखना होता है लेकिन आज बच्चे का गृह कार्य उसके माता पिता करवाते है।
आज के समय में तो शिक्षा व्यापार हो गयी है, स्कूलों में मनमानी फीस ली जा रही है, जिन शिक्षकों के ऊपर बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाने की जिम्मेदारी थी वही शिक्षक आज उससे मुनाफा कमा रहा है।
फर्स्ट आने की होड़ में बच्चा कुछ भी करने को तैयार है। इन हालातों में सुधार होना बहुत जरुरी है वरना डिग्री तो हाथ में होगी लेकिन लोग योग्यता नहीं होगी।
अगर शिक्षा को धन से अलग नहीं किया गया तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब गरीब और अमीर की खाई बहुत अधिक बढ़ जायेगी और देश में कभी भी गरीबों के सपने पुरे नहीं होंगे।