हमारे ऋषि मुनियों ने हमेशा से कहा है कि इंसान को एकाग्र होना चाहिए। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती है। जैसे एक इंसान मोबाइल पर बात करते हुए सड़क पर चलता है लेकिन उसका ध्यान आस पास नहीं है।
उसका चित्त इस बात को समझ ही नहीं रहा है की आस पास भीड़ है और उसे ख़तरा हो सकता है। वो अपने मोबाइल में लगा रहता है और पीछे से कोई गाड़ी आकर उससे टकरा जाती है। वो उस गाड़ी का हॉर्न भी नहीं सुन पाता है।
यही होता है जब आप एकाग्र नहीं होते है। इसलिए नियम यही है कि अगर आप कोई भी काम करे तो एकाग्र होकर करें। अगर आप ऐसा करने में सफल हो गए तो यकीन मानिये कि आपका कार्य अवश्य सफल हो जाएगा।
एक ऐसा व्यक्ति जो किसी कार्य का संपादन करना चाहता है लेकिन उसका ध्यान अपने लक्ष्य पर नहीं है तो वो सफल नहीं हो पायेगा। जैसे मोबाइल से आपको किसी को कॉल लगाना है तो 10 नंबर ही डायल करने होंगे और एक भी नम्बर इधर से उधर हो जाए तो सही जगह कॉल नहीं जाएगा।
उसी तरह काम, क्रोध, लोभ, मोह ईर्ष्या हमारे अंदर है। ये हमें अपने लक्ष्य को पाने नहीं देती है। जो इनसे पार पा जाता है वो कर्मयोगी कहलाता है। जो इन्ही में उलझ कर रह जाता है वो बस जीवन भर दुःखी रहता है और अपने मन से कभी भी कोई कार्य संपन्न नहीं कर पाता है।