किसी भी राज्य की भलाई इसी में है की उसका राजा योग्य हो और युवा हो तभी उस राज्य का कुछ भला हो सकता है। रामायण के एक प्रसंग से हमे ये सीख मिलती है की कैसे स्वयं को समय रहते सिंहासन की दौड़ से अलग करना चाहिए। मानस में एक प्रसंग है की एक बार राजा दशरथ सभा में सबके सामने आइना देखते है।
सबको ये बात थोड़ी सी अजीब लगी लेकिन उन्होंने देखा की उनके बाल सफेद हो रहे है। उन्होंने सभासदों से इस बात का जिक्र किया और कहा की उन्हें लगता है की अब उन्हें राज पाट त्याग देना चाहिए।
सभासद उनकी तारीफ़ करने लगे लेकिन उन्होंने स्वयं को इस बात के लिए समझा लिया था की अब समय सत्ता परिवर्तन का आ गया है और योग्य राजकुमार को ही पद दिया जाए।
सभी से विचार करने के बाद उन्हें यह महसूस हुआ की जनता राम से सबसे अधिक स्नेह और लगाव रखती है और उन्होंने राम को राजा बनाने के निर्णय लिया। इसी प्रसंग को हम महाभारत की और ले चले तो धृतराष्ट्र ने कभी भी जनता की और ध्यान नहीं दिया।
उन्होंने कभी भी विदुर और भीष्म जैसों की बात नहीं मानी और अपने पुत्र को खुद ही योग्य करार दे दिया। इसका परिणाम यह हुआ की पूरा कौरवों के वंश का ही नाश हो गया। इसलिए इस पुरे प्रसंग से हमे यह समझने को मिलता है की समय आने पर गद्दी छोड़ दे और किसी योग्य को उस पर बिठाए।