आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि को नवरात्र के नाम से जाना जाता है, इन नौ दिनों में माता रानी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और उसके अगले दिन यानी दशमी तिथि को दशहरा कहा जाता है।
इस दिन को अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में याद किया जाता है क्यूंकि इस दिन भगवान श्री राम ने असुर रावण का वध किया था। चूँकि रावण से युद्ध से पहले राम जी ने शक्ति आराधना की थी इसलिए आश्विन नवरात्र का महत्व कुछ अधिक ही है।
दशहरा एक ऐसा पर्व है जिसको लेकर पुरे देश में उत्साह रहता है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम का दर्जा दिया गया और उनके अंदर त्याग, क्षमा और धैर्य भरपूर था। राम जी में ऐसे गुण है जिनको अगर आप जीवन में अपना ले तो आपका जीवन सफल हो जाएगा। राम का रावण पर विजय पाना इतना आसान नहीं था लेकिन उनके अंदर कुछ ऐसे गुण थे जिनके कारण उन्होंने असंभव को सम्भव किया।
राम जी के अंदर वैसे तो कई गुण थे लेकिन आज के समय में जो सबसे बड़ी सीख उनसे ली जा सकती है वो है सामाजिक समरूपता की, आप कल्पना करिये की श्री राम तो राजा थे। उनका लालन पालन तो राजकुमारों के जैसा हुआ था। अगर वो वनवास में केवट और शबरी को गले नहीं भी लगाते तो कुछ बिगड़ नहीं जाता लेकिन राम तो करुणा के निधान है।
जहां सत्ता और सरकार नहीं जाती है राम ने वहां तक की यात्रा की है। केवट जैसे लोग तो दिन भर लोगों को नदी पार कराते है, कुछ पैसों से गुजर बसर कर लेते है उनके भाग्य में सम्मान कहा है ? लेकिन राम जी ने उसे गले लगाया। शबरी जैसी स्त्री जो सालों से उनका इंतजार कर रही थी, रोज उनके लिए बेर लाती उसके झूठे बेर श्री राम ने खाए।
आज के समय में अगर सबसे अधिकं किसी चीज़ की जरूरत है तो राम जी ये सीखने की कैसे इन लोगों को एक करके वो आगे चले है। राम जी चाहते थे जो जनक की सेना का इस्तेमाल कर सकते थे लेकिन उन्होंने वानरों की सेना बनायीं। इससे ये साबित होता है की उनके अंदर लोगों को जोड़ने की अद्भुत क्षमता थीं।
साधरण से बंदरों में इतना जोश भरना की वो रावण जैसे असुर की सेना से टकरा जाए आसान नहीं था लेकिन राम जी ने वानर सेना को इस तरह से प्रोत्साहित किया की वो लड़ गए। इस युग में राम के चरित्र से एक सीख लेनी चाहिए की कैसे अपने लक्ष्य को शांति से प्राप्त किया जाए।