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भारत ने गैर बासमती चावलों के निर्यात पर लगाया बैन, कई देशों में चावल के लिए मची भगदड़

भारत ने चावल की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने गैर बासमती चावलों के निर्यात को बैन कर दिया है। जिसके चलते दुनियाभर के कई देशों पर इसका खासा असर पड़ता दिखाई देने लगा है। कई देशों में आलम यह है कि डिपार्टमेंटल स्टोर्स में चावल लेने के लिए लोगों की लंबी लाइनें लगी हुई हैं। लोग छुट्टियां लेकर चावल खरीदने दुकानों पर पहुंच रहे हैं। वहीं अमेरिका और कनाडा के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में चावल की खरीदारी अचानक से बढ़ने लगी है।

By RNI Hindi Desk 
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नई दिल्ली: भारत ने चावल की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने गैर बासमती चावलों के निर्यात को बैन कर दिया है। जिसके चलते दुनियाभर के कई देशों पर इसका खासा असर पड़ता दिखाई देने लगा है। कई देशों में आलम यह है कि डिपार्टमेंटल स्टोर्स में चावल लेने के लिए लोगों की लंबी लाइनें लगी हुई हैं। लोग छुट्टियां लेकर चावल खरीदने दुकानों पर पहुंच रहे हैं। वहीं अमेरिका और कनाडा के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में चावल की खरीदारी अचानक से बढ़ने लगी है। अमेरिका के कई दुकानों में ग्राहक की तरफ से खरीदे जाने वाले चावल के बैग की संख्या सीमित कर दी गई है। प्रति परिवार एक बैग से अधिक चावल नहीं दिया जा रहा है। यहां तक कि कई दुकानों पर तो चावल मिलना बंद हो गया है।

(चावल के निर्यात पर रोक का असर)

बता दें कि भारत ने चावल के घरेलू कीमतों को काबू करने के लिए रोक लगाई तो इस फैसले का असर दुनियाभर के देशों पर देखने को मिल रहा है। खासकर अमेरिका, कनाडा में चावल की कीमतें बढ़ने लगी है। इन देशों में लोग चावल की बोरियां इकट्ठी करनी शुरू कर दी हैं। अमेरिका और कनाडा में रहने वाले लोगों के साथ-साथ रेस्टोरेंट मालिकों की परेशानी भी बढ़ने लगी है। लोग जरूरत से दोगुना खरीदकर चावल स्टोर कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में दुकानदार अपने ग्राहकों को 5 किलो से अधिक चावल नहीं दे रहे हैं। वहीं रेस्टोरेंट मालिकों का कहना है कि चावल नहीं मिलने की वजह से उन्हें मेन्यू को चेंज करना पड़ रहा है। चावल से बनने वाले तमाम सामानों की कीमत बढ़ानी पड़ रही है। गौरतलब है कि भारत विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। चावल के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी की है। ऐसे में भारत के इस फैसले का असर विश्व के देशों में देखने को मिल रहा है।

सीनियर जर्नलिस्ट प्रताप राव की कलम से

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