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महिला दिवस: श्री कृष्ण से सीखिए महिलाओं का सम्मान

By RNI Hindi Desk 
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को है, वैसे तो हमारे धर्म में महिलाओं को देवी को स्थान दिया गया है और एक काल खंड तक इस देश में महिलाओं का बड़ा सम्मान था। लेकिन अगर देखा जाए तो मध्यकाल के बाद और 1400 साल के गुलामी के कालखंड ने इस देश के आध्यात्मिक चिंतन को बेहद नुकसान पहुंचाया है। इस देश के साधु संतों और ऋषि मुनियों ने सदैव स्त्री सम्मान को अग्रणी रखा तो आज इस लेख में हम आपको बताते है कि इस देश की सभ्यता में लाखों वर्षों से महिलाओं का सम्मान होता आया है।

भगवान श्री कृष्ण इस बात के सबसे बड़े उदाहरण है, यह चीज़ हमे समझने की जरूरत है की क्यों गोपियों का विशेष अनुराग कृष्ण जी पर था, इसका सबसे बड़ा कारण है कि कान्हा जी महिलाओं की भावनाओं का बड़ा सम्मान करते थे। भागवतम और महाभारत में ऐसे कई आख्यान है जिनसे आप सीख ले सकते है की कैसे महिलाओं के आत्मसम्मान की रक्षा की जाए।

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सबसे पहले बात द्रौपदी की, पांडवों की पत्नी थी और द्रुपद की बेटी थी और कृष्ण को मित्र मानती थी, शिशुपाल का जब कृष्ण ने वध किया तो कान्हा जी की उंगली हल्की सी कट गयी और खून निकलने लगा, द्रौपदी ने साड़ी का पल्लू बांधकर मित्र धर्म निभाया और कान्हा जी कभी इस उपकार को नहीं भूले, जब पांडवों ने कौरवों की चाल में आकर जुआ खेला और द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित करने के उद्देश्य से दुशासन जब उनकी साड़ी खींचने लगा तो स्वयं श्री कृष्ण ने कृपा दिखाई और वो साड़ी खींचते खींचते थक गया लेकिन साड़ी का अंत नहीं आया और कान्हा जी ने द्रौपदी की लाज बचाई। हम भी कृष्ण से सीख सकते है कि कैसे अपनी मित्र के आत्मसम्मान की रक्षा की जाये क्यूंकि जो पुरुष स्त्री के आत्मसम्मान की रक्षा नहीं कर सकता उसे किसी स्त्री से मित्रता करने का अधिकार भी नहीं है।

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हम अक्सर महिलाओं के मन की बात का सम्मान नहीं करते और उन पर अपनी ज़िद थोपते है लेकिन कृष्ण जी एक ऐसे व्यक्ति है जिन्होनें अपनी बहन के मन की बात जानी और उसे पूरा करने के लिए बलराम जी तक से भिड़ गए। दरअसल बलराम जी का स्नेह कौरवों की और भी था और वो चाहते थे की सुभद्रा कौरवों के कुल में ब्याही जाए। जबकि सुभद्रा के मन में तो अर्जुन बसा था और उसके मन की बात कृष्ण जानते थे। कृष्ण जी बड़ी दुविधा में थे की क्या करे ?

आख़िरकार उन्होंने अर्जुन के हाथों अपनी ही बहन का हरण करवाया और उन्हें द्वारका में रहने का आदेश दिया जिसके बाद वो 1 साल द्वारिका और बाद में पुष्कर भी रहे। बाद में वो इंद्रप्रस्थ आये। यह आख्यान हमे सिखाता है की घर की किसी भी स्त्री के मन की बात को समझे बिना कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए, अगर वो आपसे कहने में संकोच भी कर रही है तो भी यह आपका दायित्व है कि आप उसके मन की बात जाने और उसे पूरा करे।

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अब बात करते है उनकी पत्नी रुक्मिणी की, भागवतम के अनुसार कृष्ण की 8 पत्नियां थी लेकिन इस लेख में बात रुक्मिणी की, भागवतम के 10वे स्कंध में यह कथा आती है कि रुक्मी जो रुक्मिणी का भाई था वो इनका विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। जैसे ही रुक्मिणी को यह बात पता चली उन्होनें एक ब्राह्मण के हाथों कान्हा जी को पत्र भेजा जिसमे उन्होंने अपने मन की बात कान्हा जी से कही, उन्होंने लिखा कि कृष्ण, मैंने सिर्फ आपको ही प्रेम किया है और सदैव आपकी ही लीलाओं का मैं गुणगान करती हूँ और मेरी कामना है कि आप मुझे अपनी पत्नी बनाये और शिशुपाल से मेरा विवाह नहीं होने दे। विवाह के आखिरी समय तक उन्हें भय रहा की क्या वो आएंगे ? लेकिन जैसे ही उन्होंने उस ब्राह्मण को मुस्कुराते हुए देखा वो समझ गयी कान्हा जी आएंगे, और अचानक से कान्हा जी रुक्मिणी को अपने रथ पर बैठकर उन्हें ले गए, शिशुपाल और जरासंध जैसे राजा उनके तेज को देखते ही रह गए और ऐसे कृष्ण ने रुक्मिणी की बात रखीं और उनसे विवाह किया।

इस प्रसंग से हम 2 बात सीख सकते है, पहली ये कि किसी की महिला का विवाह करने से पहले उसकी राय जानना बेहद ज़रूरी है वरना उसका परिवार सुचारु रूप से नहीं चल सकता, जो स्त्री अपने पति से प्रेम ही नहीं करेगी तो ना वो उत्तम संतान को जन्म दे पाएगी न ही अपने पति को कभी सुख दे पाएगी, दूसरी बात जो हम सीख सकते है वो यह है कि किसी स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए अगर समाज के 2 बोल सुनने भी पड़े तो सुन लीजिये, जरासंध ने श्री कृष्ण का यह कहकर मज़ाक बनाया कि स्त्री को भगाकर ले जाने वाले से मैं युद्ध नहीं करता लेकिन कृष्ण जानते थे की स्त्री का सम्मान उनके सम्मान से कहीं अधिक है। इसलिए स्त्री का सम्मान करना एक तरह से कृष्ण का सम्मान करना है। अगर आप सही में कान्हा जी को पाना चाहते है तो स्त्री का सम्मान करो।

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अब बात 16 हजार महिलाओं की जिनके बारे में लोग बात तो करते है लेकिन उन्हें इसका राज़ नहीं पता है। दरअसल भौमासुर एक असुर था जिसके पास माता अदिति के कुण्डल और देवताओं से प्राप्त दिव्य मणि थी, उस असुर ने इसका दुरूपयोग किया और 16 हज़ार महिलाओं को बंधक बना लिया। जब कृष्ण को यह बात पता चली तो कान्हा जी ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर उस असुर से भयानक युद्ध लड़ा और उन महिलाओं को मुक्त किया।

उनका कोई सहारा नहीं था तो कृष्ण उन्हें द्वारिका ले लाये और जब सामाजिक मान्यता की बात आयी की स्त्रियों से कौन विवाह करेगा ? एक स्त्री जो किसी की बंधक रही हो उसके साथ कौन रहे ? तब स्वयं भगवान श्री कृष्ण से उनको अपनाया, उन सभी ने कान्हा जी को पति रूप में मानकर उनकी पूजा की लेकिन कृष्ण कभी भी उन पर अधिकार नहीं जताते थे। उन्होंने यह सिर्फ इसलिए किया ताकि वो महिलाएं भी बाकी महिलाओं की तरह जीवन के समस्त सुखों का भोग कर सके इसलिए ही वो द्वारिका के महल में नहीं बल्कि अपनी इच्छा से नगर में रहती थी।

इस आख्यान से हम यह सीख सकते है की सामजिक मान्यता मायने रख सकती है लेकिन किसी के जीवन से बड़ी नहीं होती, कृष्ण ने हर उस मान्यता को तोड़ा जो स्त्री के विरुद्ध जाए, कभी भी किसी सतायी स्त्री का फायदा मत उठाइये, उसे अपनाइये क्यूंकि यह ज़रूरी है लेकिन कोशिश करिये वो अपना जीवन स्वेच्छा से जीए। स्त्री किसी भी अवस्था में पूज्य है। अंत में, हमारी आध्यात्मिक चेतना इतनी उत्तम है कि इसका अनुसरण करे तो आप सबसे श्रेष्ठ मानव बन सकते है लेकिन गुलामी के कालखंड के बाद इस चेतना को नष्ट किया गया। लेकिन जब भी जब बात स्त्री और उसके सम्मान की आएगी तो कृष्ण और राम ही आपको रास्ता दिखाएंगे और कोई नहीं।

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