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केदारनाथ मंदिर का इतिहास, जानिए इतिहास और अन्य मुख्य बातो से संबंधित जानकारी

आज का हमारा आर्टिकल केदारनाथ मंदिरपर आधारित है। इस आर्टिकल में हम आपको केदारनाथ मंदिर का इतिहासऔर अन्य मुख्य बातो से संबंधित जानकारी देंगे। जब भी भारत के तीर्थ स्थलों का नाम लिया जाता है तो उसमें केदारनाथ धाम का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है।

By RNI Hindi Desk 
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आज का हमारा आर्टिकल केदारनाथ मंदिरपर आधारित है। इस आर्टिकल में हम आपको केदारनाथ मंदिर का इतिहासऔर अन्य मुख्य बातो से संबंधित जानकारी देंगे। जब भी भारत के तीर्थ स्थलों का नाम लिया जाता है तो उसमें केदारनाथ धाम का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है।

केदारनाथ मंदिर पौराणिक सनातन सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है और स्थल हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखता है। केदारनाथ मंदिर से हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है। आइए केदारनाथ मंदिर का इतिहास और उससे जुड़ी अन्य बातें जानते हैं।

केदारनाथ मंदिर कहां है और केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने और कब करवाया था?

केदारनाथ मंदिर हिंदू धर्म में प्रचलित है तथा यह मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।  केदारनाथ मंदिर हिमालय पर्वत की गोद में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली से किया गया है और इसके निर्माता पांडव वंश जनमेजय है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। इस मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग बहुत ही प्रचलित एवं प्राचीन है।

केदारनाथ मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है और विद्वानों एवं ऋषियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 80वीं शताब्दी में द्वापर युग के समय हुआ था।

इस मंदिर के चारों ओर बर्फ के पहाड़ हैं। केदारनाथ मंदिर मुख्य रूप से पांच नदियों के संगम का मुख्य धाम माना जाता है और यह नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी है।

ऐसी मान्यताएं हैं कि ब्राम्हण गुरु शंकराचार्य के समय से ही  स्वत: उत्पन्न हुए इस शिवलिंग की आराधना करते हैं।

केदारनाथ मंदिर के समक्ष मंदिर के पुरोहित एवं यजमानों तथा तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला उपस्थित है। मंदिर के मुख्य पुजारी के लिए मंदिर के आसपास भवन बना हुआ है।

केदारनाथ मंदिर का निर्माण व वास्तुशिल्प

मंदिर के मुख्य भाग में मंडप तथा गर्भ ग्रह के चारों और प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है। मंदिर के बाहरी हिस्से में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजित हैं। मंदिर के मध्य भाग में श्री केदारेश्वर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है जिसके अग्र भाग पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा और मां पार्वती के यंत्र का चित्र है। ज्योतिर्लिंग के ऊपरी भाग पर प्राकृतिक स्फटिक माला विराजित है। श्री ज्योतिर्लिंग के चारों और बड़े-बड़े चार स्तंभ विद्यमान हैं और यह चार स्तंभ चारों वेदों के आधार माने जाते हैं।

इन विशालकाय चार स्तंभों पर मंदिर की छत टिकी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी भाग में एक अखंड दीपक विद्यमान है और हजार सालों से इसकी ज्योति का प्रकाश मंदिर की आस्था को बनाए हुए हैं। इस अखंड दीपक की ज्योति का रखरखाव मंदिर के पुरोहित सालों से करते आ रहे हैं ताकि यह अखंड दीपक की ज्योति सदैव मंदिर के भाग में और पूरे केदारनाथ धाम में अपने प्रकाश को बनाए रखें। मंदिर की दीवारों पर सुंदर एवं आकर्षक फूलों की आकृति को हस्तकला द्वारा उकेरा गया है।

केदारनाथ मंदिर की पौराणिक कहानी (Kedarnath temple story hindi)

कहा जाता है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना का ऐतिहासिक आधार तब निर्मित हुआ जब एक दिन हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार एवं महातपस्वी नर और नारायण तप कर रहे थे। उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए तथा उनकी प्रार्थना के फल स्वरूप उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहां वास करेंगे।

केदारनाथ मंदिर के बाहरी भाग में स्थित नंदी बैल के वाहन के रूप में विराजमान एवं स्थापित होने का आधार तब बना जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की विजय पर तथा भातर हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर के दर्शन करना चाहते थे। इसके फलस्वरूप वह भगवान शंकर के पास जाना चाहते और उनका आशीर्वाद पाना चाहते थे परंतु भगवान शंकर उनसे नाराज थे।

पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी पहुंचे परंतु भगवान शंकर ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए। इसके पश्चात पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए परंतु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शंकर वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए और केदार में वास किया। पांडव भी भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने के लिए एकजुटता से और लगन से भगवान शंकर को ढूंढते ढूंढते केदार पहुंच गए।

 भगवान शंकर ने केदार पहुंचकर बैल का रूप धारण कर लिया था। केदार पर बहुत सारी बैल उपस्थित थी। पांडवों को कुछ संदेह हुआ इसीलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए भीम के इस रूप से भयभीत होकर बैल भीम के पैर के नीचे से दोनों पैरों में से होते हुए भागने लगे परंतु एक बैल भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं थी।

भीम बलपूर्वक उस बैल पर हावी होने लगे परंतु वेल धीरे-धीरे अंतर्ध्यान होते हुए भूमि में सम्मिलित होने लगा परंतु भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के इस दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और तत्काल ही उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया। तब से ही नंदी बैल के रूप में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।

 

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