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‘एंटी योगी कैम्पेन’ के लिए हो रही भारी फंडिंग

Huge funding for Anti Yogi Campaign क्या इस धन से बदल पाएगा जनता का मन..बड़े ही रणनीतिक तरीके से भाजपा के बरक्स एकमात्र समाजवादी पार्टी को तानने की कोशिशें की जा रही

By RNI Hindi Desk 
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प्रभात रंजन दीन की कलम से

लखनऊ:उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के पहले के माहौल पर गहराई और निष्पक्षता से समीक्षा करें तो आप पाएंगे कि यूपी की चुनाव-पूर्व की आबोहवा सन्नाटे और संशय में है। मीडिया द्वारा बनाया जा रहा माहौल आम लोगों के नजरिए को बदलने में जी जान से जुटा है। मीडिया की इन कोशिशों के पीछे लोक-हित छोड़ कर अन्य सारे हित शुमार हैं। मीडिया का समाजवादी प्रेम हो या मीडिया के एक हिस्से का भाजपाई प्रेम, ये दोनों ‘प्रेम’ धन-लाभ के फ्रेम में कसे हुए हैं। बड़े ही रणनीतिक तरीके से भाजपा के बरक्स एकमात्र समाजवादी पार्टी को तानने की कोशिशें की जा रही हैं। मीडिया के एक खास वर्ग की इन कोशिशों पर यह सवाल चस्पा है कि क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एक ही पार्टी चुनाव लड़ रही है? क्या कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन जैसी पार्टियां भाड़ झोंकने के लिए चुनावी मैदान में हैं? दरअसल, पर्दे के पीछे झांकें तो मोदी-योगी को जड़ से उखाड़ने में जी जान से लगी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का अकूत धन इस बार के विधानसभा चुनाव में जोर मार रहा है। इसी जोर पर नेता से लेकर मीडियाई अभिनेता सब मंचों पर नाच रहे हैं। सरकारी सुविधाएं और धन प्राप्त कर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का भांड गायन करने वाले मीडिया प्रतिष्ठान भी इस भारी फंडिंग के आगे नतमस्तक हैं। मीडिया प्रतिष्ठानों में चुनावी काल में हो रही फंडिंग पर चुनाव आयोग की निगाह और निगरानी नहीं है। ‘एंटी योगी कैम्पेन’ के लिए पश्चिम बंगाल से भी विभिन्न जरियों से जबरदस्त फंडिंग हो रही है।

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बहरहाल, आम लोगों में मीडिया की साख ही कितनी बची रह गई है कि उनके प्रायोजित गायन से मतदाता अपना निर्णय बदल देगा। आप लोगों से बात करें तो वह पुरानी बात नहीं दिखेगी कि लोग कलेजा खोल कर अपनी प्रतिक्रिया दे देंगे। अब लोग बहुत सतर्क हैं और जनमत को दिग्भ्रमित करने वाले मीडिया को ही अपनी राय के बारे में भ्रमित करने की क्षमता रखते हैं। लिहाजा, भ्रष्ट मीडिया और सतर्क जनता की राय को आधार बना कर यूपी के विधानसभा चुनाव की इमानदार समीक्षा नहीं हो सकती। जहां तक लोगों की रायशुमारी से चुनावी नतीजे निकालने की कोशिश का प्रसंग है, तो हम हाल में हुए एक ऐसे ही सर्वेक्षण के विश्लेषण पर भी गौर फरमाते चलें। ‘मैटराइज न्यूज कम्यूनिकेशन’ नामकी एक सर्वे एजेंसी ने पांच दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच एक सर्वे कराया और लोगों का राजनीतिक-मन जानने की कोशिश की। उक्त सर्वे उत्तर प्रदेश में दोबारा भाजपा की सरकार बनता देख रहा है। सर्वेक्षण में 44 प्रतिशत लोग भाजपा की सरकार चाहते हैं। यही सर्वेक्षण कहता है कि 32 प्रतिशत लोग प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार चाहते हैं। 14 प्रतिशत लोग बसपा के साथ हैं तो मात्र चार प्रतिशत लोग कांग्रेस के साथ हैं। सर्वे के मुताबिक मुख्यमंत्री की रेस में योगी आदित्यनाथ अव्वल हैं, क्योंकि 45 प्रतिशत लोग योगी आदित्यनाथ को पसंद कर रहे हैं। समाजादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को महज 21 प्रतिशत लोग ही पसंद कर रहे हैं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को 18 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं तो बसपा अध्यक्ष मायावती 14 प्रतिशत लोगों की पसंद हैं। जैसा आपको बताया कि बदले हुए दौर में जनता के विचारों पर आधारित ऐसे विरोधाभासी सर्वेक्षणों की बहुत प्रामाणिकता नहीं रह गई है। मीडिया का कौन सा हिस्सा किस तरह का परिदृश्य रचने में लगा है, आज के दौर में यह कहना बहुत मुश्किल हो गया है।

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यही बात भाजपा छोड़ कर सपा में शामिल होने की खबरों की मीडियाई पतंगबाजी पर भी लागू होती है। भाजपा छोड़ कर सपा में शरीक होने की खबर पर पतंग उड़ाने वाले मीडिया संस्थानों ने समग्रता से यह झांकने की कोशिश नहीं की कि पांच साल तक सत्ता का सुख भोगने के बाद जो नेता भाजपा छोड़ कर सपा में शामिल हुए उनसे पांच साल के कुर्सी-प्रेम पर सवाल पूछे जाएं। ऐन चुनाव के समय ऐसा क्या हुआ कि उन्हें पार्टी छोड़ने पर विवश होना पड़ा, इसकी अंदरूनी वजहें तलाशी जाएं। उनसे दलबदलूपन के उनके शाश्वत चरित्र पर तीखे सवाल पूछे जाएं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि मीडिया ने ठीक विपरीत किया। मीडिया ने ऐसे पोर्ट्रे किया कि जैसे सपा में शामिल हुए भगेड़ुओं की जमात प्रदेश में सपा की सरकार ही बनवा देगी। इस प्रायोजित गुब्बारे की हवा निकलती देख कर ही अखिलेश यादव को यह ऐलान करना पड़ा कि वे भाजपा के भगेड़ुओं को सपा में शामिल नहीं करेंगे।

आप विभिन्न पार्टियों द्वारा दिए गए टिकट की सूची सामने रखें तब भी आपको टिकट वितरण के पीछे की बौद्धिकता और नैतिकता के समानान्तर विचारहीनता और अनैतिकता साफ-साफ दिख जाएगी। इस पर मीडिया के स्वाभाविक सवाल पुरजोरी से सामने आते नहीं दिख रहे। समाजवादी पार्टी का चुनावी माहौल बनाने में लगे मीडिया प्रतिष्ठान अखिलेश यादव से यह नहीं पूछ रहे कि पेशेवर हिस्ट्रीशीटर्स और दंगा कराने में शरीक रहे दागदार लोगों को सपा ने टिकट क्यों दिए? पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव पर मुजफ्फरनगर का दंगा और कैराना से हिंदुओं का पलायन जैसा मुद्दा तो चस्पा रहेगा ही। ऐसे में समाजवादी पार्टी का टिकट वितरण क्या भूतकाल के कृत्य और भविष्य की कुत्सित मंशा के संकेत नहीं देता?

 

 

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समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन के प्रत्याशियों की लिस्ट देखें तो उसमें आपको माफियाओं और अपराधियों का वर्चस्व दिखेगा। लोनी विधानसभा सीट से टिकट पाए मदन भैया को क्या मीडिया नहीं जानता? क्या मदन भैया को जनता नहीं जानती या कि पार्टी के शीर्ष नेता नहीं जानते?

पूरी तरह सोच समझ कर लोनी विधानसभा सीट का टिकट कुख्यात अपराधी सरगना मदन भैया को दिया गया। 1982 से लेकर 2021 तक मदन भैया पर संगीन अपराध के तीन दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज हैं। इसी तरह मुजफ्फरनगर दंगों और कैराना से हिंदू परिवारों को भगाने में लिप्त रहे नाहिद हसन को कैराना विधानसभा सपा का टिकट मिलना अखिलेश यादव के किन इरादों की तरफ संकेत देता है? नाहिद हसन को टिकट दिए जाने का इतना विरोध हुआ कि नामांकन दाखिल कर देने के बावजूद अखिलेश यादव को नाहिद हसन का टिकट खारिज करना पड़ा, लेकिन उसका टिकट काट कर किसे टिकट दिया गया? नाहिद के ही कहने पर अखिलेश यादव ने उसकी बहन इकरा को टिकट दे दिया। जानकार जानते हैं कि नाहिद का पूरा परिवार ही दंगा कराने में शामिल रहा है। नाहिद की मां तबस्सुम हसन समेत उसके परिवार के कम से कम 40 लोगों पर दंगा कराने के मामले दर्ज हैं। शामली और सहारनपुर जिलों में दंगा कराने के करीब डेढ़ दर्जन मामले अकेले नाहिद पर दर्ज हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने स्याना विधानसभा का टिकट हिस्ट्रीशीटर दिलनवाज को दिया है। सपा और रालोद ने साझा तौर पर बुलंदशहर विधानसभा का टिकट कुख्यात अपराधी हाजी यूनुस को दिया। यूनुस पर हत्या, हमला, लूट, गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट जैसे संगीन अपराध के 23 मुकदमे दर्ज हैं। अखिलेश ने मेरठ से सपा विधायक रफीक अंसारी को दोबारा टिकट दिया है। रफीक पर भी कई आपराधिक केस दर्ज हैं। रफीक अपनी ही पार्टी के एक नेता को जान से मारने की धमकी देकर अखिलेश के करीबी बने थे। अक्टूबर 2021 में मेरठ की अदालत ने बुंदू खान अंसारी की शिकायत पर रफ़ीक अंसारी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। नवम्बर 2017 में रफीक अंसारी का एक ऑडियो वायरल हुआ था। ऑडियो में वो समाजवादी पार्टी के ही एक अन्य नेता को नगर निगम चुनावों के दौरान जान से मारने की धमकी दे रहे थे। विधायक अंसारी की मेरठ के नौचंदी थाने में हिस्ट्रीशीट खुली हुई है।

 

 

सपा-रालोद के गठबंधन से जुड़े प्रत्याशियों की सूची में ऐसे कई नेताओं के नाम हैं जो आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। इनमें एक नाम भाजपा नेता गजेंद्र भाटी की हत्या करने वाले अपराधी अमरपाल शर्मा का भी है। गाजियाबाद के खोड़ा में भाजपा नेता गजेंद्र भाटी उर्फ गज्जी की दो सितंबर 2017 को हत्या हुई थी। यह बात उजागर हो चुकी है कि अमरपाल शर्मा ने इस हत्या की सुपारी दी थी। प्रशासन ने अमरपाल पर रासुका भी लगाई थी। उस पर अन्य कई अपराध के मामले दर्ज हैं। कभी बसपा और कांग्रेस के साथ रहे अमरपाल शर्मा आज सपा-रालोद गठबंधन से साहिबाबाद सीट से प्रत्याशी हैं। इसी तरह हापुड़ की धौलाना विधानसभा सीट से सपा विधायक और मौजूदा प्रत्याशी विवादित छवि के असलम चौधरी पर तकरीबन छह से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं।

सपा-रालोद गठबंधन के विवादास्पद टिकट वितरण के ठीक उलट भाजपा के प्रत्याशियों की लिस्ट सामाजिक-संतुलन के वैचारिक मंथन के बाद तैयार की गई प्रतीत होती है। पहले फेज में 73 सीटें पिछड़ों, दलितों और महिलाओं को दी गई हैं। इनमें 44 सीटें ओबीसी, 19 सीटें अनुसूचित जाति और 10 सीटें महिलाओं को दी गई हैं। इसके साथ ही राजपूत को 18, ब्राह्मण को 10, वैश्य को 08, सिख को 03, त्यागी को 02 और कायस्थ को 02 सीटें मिली हैं। ओबीसी में जाट को 16, गुर्जर को 07, लोधी को 06, सैनी को 05, साक्य को 02, कश्यप को 01, खडागबंशी को 01, मौर्य को 01, कुर्मी को 01, कुशवाहा को 01, निषाद को 01 और अनुसूचित जातियों में जाटव को 13, वाल्मीकि को 02, बंजारा को 01, धोबी को 01, पासी को 01 और सोनकर को 01 सीट दी गई है।

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