26 दिसम्बर को एक महत्वपूर्ण घटना हो रही है, दरअसल चन्द्रमा जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तब सूर्य ग्रहण की घटना होती है, सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो की अमावस्या के दिन घटित होती है और यह ग्रहण भारत में भी देखा जायेगा।
हमारी धार्मिक जो मान्यताये है उनके अनुसार सूर्य ग्रहण एक अशुभ घटना है क्यूंकि सूर्य के प्रकाश से ही ये सम्पूर्ण जगत विद्यमान है जिसके कारण सूर्य ग्रहण को किसी भी नज़रिये से शुभ नहीं माना जाता है।
दरअसल समुद्र मंथन में जब अमृत निकला तो भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और देवताओं को अमृत पिलाने लगे, लेकिन एक चतुर राक्षस राहु बीच में आकर बैठ गया और अमृत पीने लगा, लेकिन सूर्य और चंद्र ने उसे देख लिया और विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
लेकिन राहु तो अमृत पी चुका था तो वो मरा नहीं, सर वाला भाग कहलाया राहु और धड़ वाला केतु और तभी से वो सूर्य और चंद्र को दुश्मन मानता है और उन्हें ग्रसता है जिसे ग्रहण बोला जाता है।
26 दिसंबर को सूर्यग्रहण सुबह 8:21 बजे से शुरू होगा। 8:21 बजे से स्पर्श के बाद 9:40 बजे ग्रहण का मध्य होगा, 11:14 बजे मोक्ष होगा। ग्रहण लगभग 173 मिनट लंबा चलेगा।
हमारी मान्यताओं की माने तो तो 12 घण्टे पहले ग्रहण का सूतक काल शुरू हो जाता है जिसमे कई कार्यो को करने की मनाही है , सूतक 25 दिसंबर को शाम 5 बजकर 32 मिनट से शुरू हो जायेगा जिसकी समाप्ति 26 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 57 मिनट पर होगी।
ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है, गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है।
सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर पड़ती है इसलिए सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन करने की भी सख्त मनाही है वही मंदिरो के कपाट भी इस दौरान बंद कर दिए जाते है और भगवान को स्पर्श नहीं किया जाता है।
ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करने का विधान है, भजन-कीर्तन करके का भी फल माना जाता है शुभ होता है वही ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है वही इस समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राह्मण को दान देने की मान्यता है, मंदिरो में ईश्वर की मूर्ति को स्नान करवाकर तुलसी जल से शुद्ध किया जाता है, वही प्रोसेस लोगो को अपने घर में करना चाहिए।