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2020 में इन राशियों की खत्म होगी साढ़े साती और ढैया

By RNI Hindi Desk 
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वैदिक ज्योतिष में शनि 9 ग्रहो में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है क्यूंकि शनि एक कर्म प्रधान ग्रह है वही काल पुरुष की कुंडली में शनि दसवें और ग्यारहवें भाव का स्वामी है, शनि की सामान्य राशि मकर दसवें भाव का वही शनि की मूल त्रिकोण राशि ग्यारहवें भाव को दर्शाती है जो की कर्म और लाभ स्थान कहे जाते है।

ज्योतिष ने शनि को आठवें भाव का कारक माना गया है जिसे मृत्यु का भाव कहा जाता है, शनि ज्योतिष में सबसे धीमा ग्रह है और यह मनुष्य के जीवन में न्याय का कारक है.

शनि का राशि परिवर्तन ज्योतिष में एक अहम घटना होती है क्यूंकि शनि सबसे धीमा ग्रह है और यह एक राशि ने लगभग ढाई वर्ष तक रहता है वही सबसे तीव्र गति चन्द्रमा की होती है और वह एक राशि का परि भ्रमण महज ढाई दिन में कर लेता है।

शनि की साढ़े साती का अर्थ क्या है ?

शनि जब जातक की चंद्र राशि से 12 वा, लग्न अथवा दूसरे स्थान पर गोचर करता है तो उस पुरे समय को शनि की साढ़े साती के काल से सम्बोधित किया जाता है. अगर हम विचार करे तो शनि एक राशि में ढाई साल रहता है तो 3 राशि में गोचर का समय हुआ साढ़े सात साल , बस इसी समय को साढ़े साती कहा जाता है।

2020 में शनि का गोचर –

इस साल शनि ग्रह 24 जनवरी को धनु राशि से अपनी स्वराशि मकर में गोचर करेगा, इसके साथ ही इसी वर्ष 11 मई से 29 सितंबर तक यह मकर राशि में ही वक्री होगा और 27 दिसंबर को अस्त हो जाएगा और वापिस अपनी उदय होकर मार्गी हो जाएगा और मकर में गोचर करेगा।

किस राशि की खत्म होगी साढ़े साती ?

शनि के धनु राशि के गोचर के कारण वृश्चिक राशि के जातको की कुंडली में शनि का गोचर दूसरे भाव यानी धन स्थान में था लेकिन अब शनि के मकर राशि में गोचर करने के साथ ही इस राशि के जातक शनि की साढ़े साती से पूर्णतया मुक्त हो जायेगे वही धनु राशि के जातको के लिए शनि की साढ़े साती का अंतिम चरण होगा, मकर राशि के जातको के लग्न में गोचर करेगा।

किस राशि की शुरू होगी साढ़े साती ?

कुम्भ राशि के जातको के लिए वर्तमान में शनि का गोचर 11वें भाव यानी की लाभ स्थान में हो रहा है लेकिन शनि जनवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में जैसे ही अपनी राशि मकर में गोचर करेगा कुम्भ राशि के जातको की साढ़े साती शुरू हो जायेगी, कुम्भ राशि के लिए शनि का गोचर 12 वे स्थान में होगा जिसके की विदेश यात्राओं और व्यय का भाव माना गया है।

शनि की ढैया का अर्थ क्या है ?

जब शनिदेव चंद्र कुंडली अर्थात जन्म राशि के अनुसार चतुर्थ व अष्टम से गोचर करते हैं तो उसे शनि की ढैया कहकर सम्बोधित किया जाता है, आम तौर पर माना जाता है की शनि की ढैया अशुभ फल देती है क्यूंकि चौथे भाव से मानसिक स्तिथि और अष्टम भाव से दुर्घटना का विचार होता है लेकिन  जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ यात्रा, समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।

किन राशियों की ढैया खत्म होगी ?

वर्तमान में शनि का गोचर धनु में है जिसके फलस्वरूप कन्या राशि के जातको के चौथे भाव और वृष राशि के अष्टम भाव में शनि का गोचर है यानी दोनों राशियों की इस वक़्त ढैया चल रही है लेकिन 2020 में शनि जैसे ही मकर में आयेगा ये दोनों राशियां शनि की ढैया से मुक्त हो जायेगी।

किन राशियों की ढैया शुरू होगी ?

शनि का गोचर जब मकर राशि में आयेगा तो तुला राशि के जातको के लिये यह गोचर चौथे भाव में होगा वही मिथुन राशि के जातको के लिये यह गोचर आठवें भाव में होगा जिसके कारण अब अगले ढाई वर्षो तक तुला और मिथुन राशि के जातक शनि की ढैया के प्रभाव में रहेंगे।

शनि के अशुभ प्रभाव से बचने का उपाय –

वैसे तो साढ़े साती और ढैया के समय शनि का प्रभाव कैसा रहेगा वो जातक की जन्मकुंडली पर निर्भर करता है, जातक की कुंडली में शनि किस स्तिथि में है ! वह क्या योग बना रहा है ! कारक है या अकारक है ! दशा अंतर्दशा कैसी है ! इन तमाम विश्लेषण के बाद ही यह निश्चित किया जाता है की शनि का प्रभाव कैसा रहेगा।

फिर भी अगर शनि बुरे फल दे रहा हो तो जातक को  शनि के बीज मंत्र की कम से कम तीन मालाएँ अवश्य करनी चाहिए और मंत्र जाप से पूर्व संकल्प करना जरुरी है. बीज मंत्र के बाद शनि स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक होगा.बीज मंत्र – “ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:”

किसी भी शनिवार से आरंभ कर के लगातार 43 दिन तक हनुमान जी के मंदिर में सिंदूर, चमेली का तेल, लड्डू और एक नारियल चढ़ाना चाहिए. सुंदरकांड का पाठ करने के बाद हनुमान चालीसा और श्रीहनुमाष्टक का पाठ करने से भी शनि से मिलने वाले कष्ट कम होते हैं.

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