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पोस्टर विवाद: सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार ने कहा- बंदूक लहराने वालों की कैसी निजता

By RNI Hindi Desk 
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नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भड़की हिंसा में शामिल कथित उपद्रवियों के पोस्टर छापने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान योगी सरकार ने दलील दी कि सरेआम बंदूक लहराने वाले दंगाईयों की निजता का सवाल बेमानी है।

दरअसल, उच्च न्यायालय ने लखनऊ में हुई हिंसा व तोड़फोड़ के आरोपियों के शहर में लगाए गए पोस्टर को हटाने का आदेश दिया था। जिसके खिलाफ योगी सरकार उच्चतम न्यायालय पहुंची।

मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय ने इसे तीन जजों की पीठ को भेज दिया है। एक अन्य आरोपी की तरफ से अदालत में पेश हुए वकील ने कहा कि यूपी सरकार के पास इस तरह की होर्डिंग लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह राज्य सरकार का एक प्रतिशोधात्मक दृष्टिकोण है।

आरोपी मोहम्मद शोएब का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि, शोएब अपने आपको बहुत पीड़ित महसूस कर रहा है। उसे डर है कि कोई उसके घर आकर उसकी हत्या कर देगा। वहीं, अभिषेक मनु सिंघवी, बाल यौन शोषण और हत्यारों के मामलों का उदाहरण देते हुए कहा कि, हमारे देश में ऐसी नीति कबसे लागू हो गई कि हम लोगों के नाम सार्वजनिक करके उनकी मानहानि कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो सड़क पर चल रहे उस शख्स की भीड़ हत्या कर सकती है।

पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी की तरफ से अदालत में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखते हुए कहा कि, 1972 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं जो आईजी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

शीर्ष अदालत ने पाया कि यूपी सरकार ने होर्डिंग्स पर कथित आगजनी करने वालों का ब्योरा देने के लिए यह कठोर कदम उठाया था। अदालत ने कहा कि वह राज्य की बेचैनी को समझ सकता है लेकिन फैसले को वापस लेने के लिए उसके पास कोई कानून नहीं है। इसके साथ ही, तुषार मेहता ने कहा कि एक शख्स जो प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाता है और कथित तौर पर हिंसा में शामिल है। वह निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

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