आज कल बच्चो और युवाओं में भी अपराध की प्रवृति बढ़ती जा रही है। ऐसे में हर माँ बाप यह सोचकर परेशान रहते है की कैसे उनके बच्चों को वो सही राह दिखाए और कैसे उन्हें सही और गलत का भेद समझाए।
ऐसे में माँ बाप की उलझन दूर करने में महाभारत की एक कथा उनका मार्गदर्शन कर सकती है। हम सब जानते है की महाभारत में कौरव और पांडव के रूप में दो परिवार है लेकिन एक धर्म पर था और दूसरा अधर्म पर था।
लेकिन दोनों के लालन और पोषण का भी फर्क था। देखा जाए तो पांडव और कौरवों के बीच सबसे बड़ा अंतर् उनकी परवरिश का ही तो था। यही कारण था की एक के साथ स्वयं भगवान् थे और दूसरी और पुरे वंश का नाश हो गया।
कुंती ने अकेले ही युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव को पाला। धर्म-अधर्म का ज्ञान दिया, अच्छे संस्कार दिए और अपना हर काम खुद करना सिखाया। पांडवों का बचपन जंगल में गुजरा जिसके कारण वो आत्मनिर्भर बने और खुद का काम खुद करना सीख गए।
कुंती के संस्कारों का ही असर था कि वे सभी विपरीत समय में भी धर्म के रास्ते से नहीं हटे। इसी वजह से उन्हें श्रीकृष्ण का साथ मिला। दूसरी और कौरवों को सारे सुख मिले लेकिन संस्कार नहीं मिल सके।
इसका असर ये हुआ की उनके हर गलत काम को उनके पिता सही कहते रहे और अंत समय तक वो अपने पुत्रों को समझा नहीं पाए। धृतराष्ट्र दुर्योधन के अधर्म पर भी हमेशा मौन रहे।
अंत में युद्ध हुआ और कौरव सब हार गए। इस प्रसंग से आज के माँ बाप बहुत कुछ सीख सकते है। बच्चों को सब साधन दीजिये लेकिन अति मत कीजिये वरना बच्चा गलत रास्ता भी ले लगा। बच्चों को समर्थ बनाए।