भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में योग का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है, माना जाता है कि जिस दिन से सभ्यता का विकास हुआ उसी दिन से योग की शुरुआत हो गयी थी, योग के बारे में कहा जाता है कि यह एक आध्यात्मिक विषय है जिसके कारण मन और शरीर के बीच में सामंजस्य बना रहता है।
विद्वानों का मत है कि योग दरअसल संस्कृत के एक शब्द ” युज ” से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है जोड़ना, माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस योग के माध्यम से ब्रह्मांड से जुड़ी ऊर्जा को महसूस करके उससे अपने शरीर को जोड़ लेता है वो योगी कहलाता है, साधकों के अनुसार योग का महत्त्व सिर्फ शरीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि योग साधना से जुड़ा हुआ जातक एक उच्च स्तर की आत्म अनुभूति प्राप्त करता है।
मानवता के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह के उत्थान को जाग्रत करने में योग का बहुत बड़ा योगदान है, माना जाता है कि 2700 इसा पूर्व, जबसे सिंघु घाटी सभ्यता का विकास हुआ तबसे योग का अस्तित्व है। धर्म और आस्था से परे योग विज्ञान है जिसमें योगियों का यह मत है कि शिव पहले योगी थे, धर्म ग्रंथों में शिव को साधक बताया गया है जिसका संदेश है कि मनुष्य को भी अपने शरीर और मन के संतुलन के लिए साधना करनी चाहिये।
योग में वो शक्ति है जिसमें यह माना जाता है की इसके द्वारा ब्रह्मांड की किसी भी शक्ति के द्वारा सम्पर्क साधा जा सकता है, भगवद गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने योग की व्याख्या की है, उन्होनें योग के 3 प्रकार बताये है, ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग।
कहीं कहीं ग्रंथों में धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग का भी जिक्र कई ग्रन्थों में आता है लेकिन वर्तमान समय में अष्टांग योग को प्रधानता दी गयी है, अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। यह आठ अंग सभी धर्मों का सार माने जाते हैं। ये आठ अंग हैं यम, नियम,आसन ,प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा ध्यान और समाधि।
अगर हम महापुरुषों की मुद्रा को गौर से देखे तो महात्मा बुद्ध से लेकर महावीर स्वामी पद्मासन मुद्रा में है, ग्रंथों में वर्णन है कि सबसे पहले ब्रह्मा ने सूर्य को योग का ज्ञान दिया था, उसके बाद सूर्य ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया।
1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने सिंधु सरस्वती सभ्यता को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। वेद, उपनिषद, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है।
इन सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने 200 ई.पूर्व योग सूत्र लिखा जिसे की योग का सबसे व्यवस्थित सूत्र बोला गया है, गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता रहा और आज भी न सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी योग लोकप्रिय है।
तो आज इस लेख में हमने जाना योग के प्राचीन इतिहास के बारे में, अब अगले लेख में हम चर्चा करेंगे आधुनिक योग के जनक बाबा रामदेव की।