रिपोर्ट: सत्यम दुबे
देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरती से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। उंची-उंची पहाड़ियों और कल-कल निनाद करती गंगा की जलधारा अपने आप में प्राकृतिक छटा बिखेर रही है। लेकिन जितनी खूबसूरती वहां की वादियों में है, उतना ही ज्यादा खतरा वहां के निवासियों को भी है। साल 2013 में आज की ही रात 16 और 17 जून भीषण बारिश हो रही थी। बारिश की बूंदें वहां के वातावरण को और खूबसूरत बना रही थी, कि अचानक घाटी के शांत माहौल में एकाएक हुए कोलाहल ने सबको चौंका दिया।
अचानक वहां के हालात ये हो गये कि कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की ओर भाग रहे थे। थोड़े ही देर में पूरी घाटी में मंदाकिनी नदी का पानी भर गया। इसके बाद मंदाकिनी नदी का रुप इतना विकराल हो गया कि किसी ने सोचा भी नहीं था। नदी के पानी में इतना वेग था कि अपने रास्ते में आने वाले घरों, रेस्तरां और लोगों को बहा ले गयी। रात में नदी ने इतना तांडव किया कि सुबह पूरा देश शोक में डूब गया।
बाबा केदरनाथ के दर्शन के लिए देश के अलग-अलग राज्य से आए हजारों लोगों का कोई अता-पता नहीं था। आपको बता दें कि लापता हुए लोगों के रिश्तेदार आज भी अपनों का इंतजार कर रहे हैं। केदारनाथ त्रासदी को आठ साल गुजर गए हैं, लेकिन इसकी भयावह यादें अब भी रोंगटे खड़े कर देती है। 13 जून 2013 को उत्तराखंड में जबरदस्त बारिश शुरू हुई।
बारिश के तेज धारों के बीच वहां का चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया था, जिसके बाद मंदाकिनी नदी का जलस्तर देखते ही देखते बढ़ने लगा। इस बढ़े हुए जलस्तर ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल का बड़ा हिस्सा अपनी चपेट में ले लिया। तेजी से बहती हुई मंदाकिनी का पानी केदारनाथ मंदिर तक आ गया। इसके बाद पूरे क्षेत्र में जो तबाही हुई, उसके निशान आज भी केदारघाटी में नजर आते हैं।
मंदाकिनी नदी ने अपना विकराल रूप दिखाया और इस हादसे में 6 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे। आज भी केदारघाटी में नरकंकाल मिलते रहते हैं। हजारों लोगों का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। इस आपदा में फंसे लोगों को बचाने के लिए सेना को तुरंत भेजा गया। सेना के जवानों ने लाखों लोगों को रेस्क्यू किया गया। लगभग 110000 लोगों को सेना ने बचाया।
इस भयंकर त्रासदी के बाद उत्तराखंड के लोग इस प्राकृति की मार को झेलने के बाद धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी को वापस पटरी ले आए हैं। नए निर्माण के बाद केदारघाटी भी अब पूरी तरह से बदल गई है। हालांकि, इस त्रासदी में जिन्होंने अपनों को खोया है, उनके जख्म शायद ही कभी भर पाएं।