पुरुष नसबंदी के बाद शारीरिक कमजोरी आती है। इसके बाद पहले की तुलना में यौन कमजोरी भी आ जाती है। कुछ ऐसे ही सामाजिक मान्यताओं के कारण पुरुष नसबंदी अपनाने में लोग हिचकिचाते हैं।
रिपोर्ट:पायल जोशी
पुरुष नसबंदी के बाद शारीरिक कमजोरी आती है। इसके बाद पहले की तुलना में यौन कमजोरी भी आ जाती है। कुछ ऐसे ही सामाजिक मान्यताओं के कारण पुरुष नसबंदी अपनाने में लोग हिचकिचाते हैं। लेकिन अब इस चीज़ से घबराने की ज़रूरत नही है। क्योंकि अब एक ऐसे डा. है जिन्होने इस बारे में खुल कर जानकारी दी है।
बता दें की परिवार नियोजन के लिए नसबंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 21 नवंबर से चार दिसंबर तक पुरुष नसबंदी पखवाड़ा आयोजित किया गया है। जिसमें 21 साल पहले नसबंदी करा चुके एमबीपीजी के प्राध्यापक डा. संतोष मिश्र ने लोगों से आग्रह किया कि स्थायी गर्भनिरोधक के रूप में महिलाओं के बजाय पुरुषों को नसबंदी हेतु आगे आना चाहिए।
डा. संतोष मिश्र ने कहा है के नसबंदी कराने से किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक कमजोरी नहीं होती है। पुरुष नसबंदी की प्रक्रिया महिलाओं की अपेक्षा बहुत सरल है और कम समय में पूर्ण हो जाती है। डा. मिश्र की जीवनसंगिनी गीता मिश्र ने कहा कि दो बेटियों के जन्म के उपरान्त समाज और परिवार की परंपरा के अनुसार उन्होंने फैमिली प्लानिंग का प्रस्ताव रखा, लेकिन पति डा. संतोष ने नसबंदी की पहल की, जो किसी प्यारे उपहार से कम नहीं था।
मबीपीजी में प्रोफेसर डा. संतोष मिश्र ने बताया कि पुरुष नसबंदी पखवाड़ा दो चरणों में होता है, और जो इस बार पुरुष नसबंदी पखवाड़े को एक नई थीम के आधार पर मनाया जा रहा है। जिसका नारा है, पुरुषों ने परिवार नियोजन अपनाया, सुखी परिवार का आधार बनाया।
बता दें की पखवाड़े के पहले चरण में पुरुष नसबंदी की जानकारी दी जाती है और इसे अपनाने के लिए तैयार किया जाता है। जबकि दूसरे चरण में सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। जिसके चलते पहला चरण 21 नवंबर से 27 नवंबर तो दूसरा चरण 28 नवंबर से चार दिसंबर तक मनाया जाएगा।
दरअसल स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपने क्षेत्र के समस्त लक्षित दंपतियों के पुरुषों से संपर्क कर व्यक्तिगत चर्चा में नसबंदी के फायदे बता रहे हैं और साथ ही समुदाय में फैले पुरुष नसबंदी से संबंधित मिथकों और भ्रांतियों को दूर करने के लिए परामर्श दिया जा रहा है।