देहरादून: उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में नियमों की अनदेखी का मामला तूल पकड़ने के बाद निशाने पर आए बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष श्रम मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने लंबे इंतजार के बाद सोमवार को चुप्पी तोड़ी। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि बोर्ड अध्यक्ष के उनके कार्यकाल में न तो बोर्ड में कहीं नियमों की अनदेखी हुई और न कोई गबन ही हुआ। यह पूछे जाने पर कि वे बार-बार निशाने पर क्यों आते हैं, तो रावत ने कहा, ‘मैं महाभारत का अभिमन्यु नहीं, जो अंतिम द्वार पर मारा जाऊं’।
कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष की जिम्मेदारी 2017 से श्रम मंत्री डॉ. रावत देख रहे थे। इस वर्ष अक्टूबर में उन्हें अध्यक्ष पद से हटाकर शमशेर सिंह सत्याल को यह जिम्मा सौंपा गया। शासन का कहना था कि बोर्ड का तीन साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद सरकार के फैसले के अनुरूप बोर्ड का पुनगर्ठन किया गया है। फिर तो बोर्ड के सचिव से लेकर सभी सदस्य बदल दिए गए। इस बीच बोर्ड के जरिये पूर्व में साइकिल वितरण में गड़बड़ी की बात सामने आई। फिर नए बोर्ड की पहली बैठक में बोर्ड के तीन साल के कार्यों का स्पेशल ऑडिट कराने का निर्णय लिया गया।
हालांकि, नवंबर के दूसरे पखवाड़े से सीएजी ने बोर्ड के कार्यों के ऑडिट शुरू कर दिया। ये बात सामने आ रही है कि बोर्ड में तमाम कार्यों में न सिर्फ नियमों की अनदेखी हुई, बल्कि अनियमितता की आशंका भी है। यही नहीं, कोटद्वार में ईएसआइ के अस्पताल के लिए एक फर्म को 20 करोड़ की राशि बोर्ड द्वारा जारी किए जाने का मसला इन दिनों चर्चा में है। प्रकरण में शासन स्तर से भी एक आइएएस की अध्यक्षता में अन्वेषण समिति गठित की गई है।
लंबे अर्से बाद श्रम मंत्री मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने सोमवार को इस प्रकरण पर चुप्पी तोड़ी और बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए उनके कार्यकाल में हुए कार्यों का ब्योरा रखा। विधानसभा में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज की स्थापना पार्टी के घोषणापत्र में शामिल है। इसी क्रम में वहां कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ईएसआइ) के तहत प्रयास हुए, मगर केंद्र से इसकी अनुमति नहीं मिली। अलबत्ता, 300 बेड के अस्पताल के निर्माण पर तत्कालीन केंद्रीय श्रम मंत्री ने सैद्धांतिक स्वीकृति दी। इसके बाद ईएसआइ ने कर्मकार कल्याण बोर्ड से ऋण के रूप में 50 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने का आग्रह किया।
इस पर कोटद्वार में सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के निर्माण के लिए श्रम विभाग की पत्रावली पर मुख्यमंत्री के अलावा तत्कालीन वित्त मंत्री प्रकाश पंत से अनुमोदन लिया गया। मुख्यमंत्री ने नोट शीट में 58 वें और वित्त मंत्री ने 75 वें पृष्ठ पर अनुमोदन दिया है। फिर इसका शासनादेश हुआ और बोर्ड से 50 करोड़ रुपये की राशि ऋण के रूप में देने का निर्णय हुआ। निर्माण कार्य के लिए केंद्र सरकार की संस्था ब्रिज एंड रूफ कंपनी इंडिया लि. को कार्यदायी संस्था नामित किया गया। शासन, ईएसआइ व बोर्ड के मध्य एमओयू साइन होने के बाद प्रथम किस्त के रूप में 20 करोड़ की राशि अवमुक्त की गई। तब ये भी तय हुआ था कि 15-15 करोड़ की दो अगली किस्तें दी जाएंगी।
उन्होंने कहा कि बोर्ड ने इस मामले में जो भी कदम उठाए, वह श्रम सचिव की ओर से जारी शासनादेश के अनुसार उठाए। यदि इस मामले में कहीं वित्त या अन्य विभागों की सहमति की जरूरत थी तो, ये कार्य सचिव का था। बोर्ड या ईएसआई का इससे कोई मतलब नहीं था। साथ ही यह सचिव का दायित्व था कि यदि कोई अड़चन है तो वह मुख्यमंत्री या श्रम मंत्री के संज्ञान में लाते। उन्होंने कहा कि बोर्ड में जो भी कार्य हुए वह नियमों के तहत हुए।