योगी आदित्यनाथ के खिलाफ खड़ा होने लायक नेता का सपा-बसपा-कांग्रेस में टोटा है। गोरखपुर सदर से भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को प्रत्याशी बना कर यह तय कर दिया है कि गोरखधाम पर योगी का ही झंडा लहराने वाला है। अयोध्या से योगी को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चाओं पर अचानक ब्रेक लगा कर भाजपा ने अयोध्या पर राजनीति-राजनीति 'खेलने' का विपक्ष से मौका छीन लिया।
प्रभात रंजन दीन की कलम से
लखनऊ: योगी आदित्यनाथ के खिलाफ खड़ा होने लायक नेता का सपा-बसपा-कांग्रेस में टोटा है। गोरखपुर सदर से भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को प्रत्याशी बना कर यह तय कर दिया है कि गोरखधाम पर योगी का ही झंडा लहराने वाला है। अयोध्या से योगी को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चाओं पर अचानक ब्रेक लगा कर भाजपा ने अयोध्या पर राजनीति-राजनीति ‘खेलने’ का विपक्ष से मौका छीन लिया।
गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी के बतौर चुनाव मैदान में उतरे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ समाजवादी पार्टी या कांग्रेस या बहुजन समाज पार्टी किस उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाएगी, इसे लेकर तीनों पार्टियों के अंदर भारी उहापोह है। तीनों पार्टियों पर यह भारी दबाव है कि योगी के खिलाफ किसी प्रभावशाली व्यक्तित्व को मैदान में उतारे।
लेकिन प्रश्न है कि सपा, बसपा या कांग्रेस में योगी के समानान्तर खड़ा होने लायक प्रभावशाली व्यक्तित्व कौन है? सपा और बसपा में ऐसे किसी प्रभावशाली व्यक्तित्व का टोटा है, लिहाजा इन दोनों पार्टियों में अनिर्णय की स्थिति है।
कांग्रेस प्रत्याशी को लेकर भी लोगों की जिज्ञासा बनी हुई है। अब योगी गोरखपुर में ही बने रहेंगे, भाजपा नेतृत्व द्वारा योगी को गोरखपुर से प्रत्याशी बनाए जाने के बाद ऐसा बचकाना बयान देकर अखिलेश ने सपा में व्यक्तित्व का खोखलापन पहले ही दर्शा दिया था।
योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने को लेकर पहले से प्रायोजित हवा बहाने की कोशिश चल रही थी। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि अयोध्या से योगी चुनाव लड़ते तो समाजवादी पार्टी को एक बार फिर बाबरी ढांचे का विध्वंस याद दिलाने और मुस्लिम मतदाताओं को उकसाने का मौका मिल जाता, लेकिन भाजपा ने दूरदृष्टि से काम लेते हुए विपक्ष के किसी भी दल को यह मौका नहीं दिया और योगी को गोरखपुर सदर से प्रत्याशी बना दिया। भाजपा नेतृत्व के इस फैसले से विपक्ष अचानक औंधे मुंह गिर पड़ा और सकते में आ गया।
अयोध्या पर मुस्लिम-कार्ड खेलने का मौका सपा को नहीं मिल पाया। योगी का यह पहला विधानसभा चुनाव होगा, लेकिन गोरखपुर लोकसभा सीट से ही वे पांच बार सांसद रह चुके हैं। गोरखपुर सदर सीट पर योगी की पकड़ इतनी है कि एक बार (2002 में) भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ उन्होंने राधा मोहन अग्रवाल को लड़वा कर जितवाया था और भाजपा प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। अभी राधा मोहन अग्रवाल ही गोरखपुर सदर से भाजपा के विधायक हैं। योगी के आने के बाद अग्रवाल को कहीं और शिफ्ट किया जाएगा।
बहरहाल, 26 वर्ष की उम्र में ही संसद पहुंचे योगी आदित्यनाथ पांच बार के सांसद हैं। सांसद रहते हुए ही योगी वर्ष 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री बने थे। योगी के गुरु महंत अवैद्यनाथ गोरखपुर से चार बार सांसद रहे थे। योगी गोरक्षपीठ के मुख्य महंत भी हैं, इसलिए योगी का गोरखपुर से चुनाव लड़ना योगी के लिए नहीं, बल्कि गोरखपुर के लोगों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।
गोरखपुर के लोगों की नजर में योगी आदित्यनाथ का सम्मान भाजपा नेता से कहीं ज्यादा गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में है। गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ को प्रत्याशी बनाए जाने से भाजपा को पूर्वांचल की 130 विधानसभा सीटों पर भी फायदा मिलने वाला है। यही लक्ष्य साधने के लिए योगी को गोरखपुर से चुनावी मैदान में उतारा गया है।
विधानसभा चुनाव में गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तय हो चुकी उम्मीदवारी के बाद उनके समर्थकों का उत्साह उफान पर है, यह जमीन पर देखा जा सकता है। देश और प्रदेश के अलावा दुनियाभर की निगाहें अब गोरखपुर सदर विधानसभा क्षेत्र पर लग गई हैं।
आंकड़ों के नजरिए से भी देखें तो गोरखपुर शहर की चुनावी लड़ाई एकतरफा ही रही है। संसदीय चुनाव में गोरखपुर शहर क्षेत्र से योगी के पक्ष में बम्पर वोटिंग होती रही है। गोरखपुर विधानसभा क्षेत्र में अब तक हुए 17 चुनावों में 11 बार जनसंघ, हिंदू महासभा और भाजपा का दबदबा स्थापित हुआ है।
गोरखपुर सदर पर अब तक हुए 17 चुनावों में 10 बार जनसंघ, हिंदू महासभा और भाजपा का परचम लहरा चुका है। एक बार जनसंघ के प्रत्याशी को जनता पार्टी के बैनर से जीत मिली थी। यहां से छह बार कांग्रेस को जीत मिली लेकिन पिछले तीन दशक से कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। सपा और बसपा का यहां से आज तक खाता भी नहीं खुला। गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और योगी आदित्यनाथ के अब तक के चुनावी आंकड़े एकतरफा लड़ाई की ओर ही इंगित कर रहे हैं।
वर्ष 1998 से लेकर वर्ष 2014 तक लगातार पांच बार गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए योगी आदित्यनाथ वोटों के लिहाज से गोरखपुर सदर/शहर विधानसभा क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंदियों से करीब तीन गुना अधिक मार्जिन से आगे रहे हैं। यही वजह है कि गोरखपुर शहर सीट पर योगी को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद यहां की लड़ाई को विपक्ष भी रस्म अदायगी ही मान कर चल रहा है।
याद करते चलें कि वर्ष 1967, 1974 और 1977 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर सदर की सीट पर जनसंघ का दबदबा रहा। 1977 के चुनाव में जनसंघ पार्टी जनता पार्टी का हिस्सा बनकर चुनाव मैदान में थी। इसके बाद 1980 और 1985 का चुनाव को छोड़ कर 1989 से लेकर अबतक यह सीट भाजपा के पाले में रही है। वर्ष 2002 में योगी आदित्यनाथ के संरक्षण में हिंदू महासभा से चुनाव लड़ने वाले राधा मोहन अग्रवाल भी बाद में भाजपा का हिस्सा हो गए।
गोरखपुर शहर क्षेत्र में सांसद के रूप में योगी आदित्यनाथ को हासिल वोटों पर गौर करें तो पाएंगे कि योगी और उनके खिलाफ लड़े अन्य दलों के प्रत्याशियों में दूर-दूर तक कोई मुकाबला ही नहीं रहा है। योगी पांच बार सांसद रहे हैं और हमेशा ही शहर क्षेत्र से उन्हें बम्पर वोट मिले। उनके आखिरी दो चुनावों के आंकड़े देखें तो 2009 के संसदीय चुनाव में उन्हें गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से कुल पड़े 122983 मतों में से 77438 वोट मिले जबकि दूसरे स्थान पर रहे बसपा के विनय शंकर तिवारी को मात्र 25352 वोट मिले थे। उस समय यहां सपा को महज 11521 मत हासिल हुए थे।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में योगी को मिले वोटों का ग्राफ और बढ़ गया। 2014 के संसदीय चुनाव में गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से कुल पोल हुए 206155 वोटों में से अकेले 133892 वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहीं सपा की राजमती निषाद को 31055 और बसपा के रामभुआल निषाद को 20479 वोट ही हासिल हो सके थे।