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सपा-रालोद के लिए कहीं ‘गड्ढा’ न बन जाए गठबंधन

समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का आगामी विधानसभा के लिए चुनावी गठबंधन तो हो गया, लेकिन यह गठबंधन कहीं इस गठबंधन के लिए गड्ढा न बन जाए, इसकी आशंका गहराने लगी है।

By RNI Hindi Desk 
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प्रभात रंजन दीनकी कलम से

समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का आगामी विधानसभा के लिए चुनावी गठबंधन तो हो गया, लेकिन यह गठबंधन कहीं इस गठबंधन के लिए गड्ढा न बन जाए, इसकी आशंका गहराने लगी है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव और रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने चुनाव लड़ने वाले प्रथम चरण के प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। अखिलेश और जयंत दोनों के ही तमाम चहेते नेता टिकट नहीं मिलने से गहरे नाराज हैं। इन चहेतों का नाराज होना पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा के लिए घातक साबित हो सकता है। इसके अलावा अपराधियों और दंगाइयों को टिकट दिए जाने से आम लोगों में भी नाराजगी है। यह नाराजगी भी सपा-रालोद गठबंधन के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली है।

दरअसल सपा और रालोद मुखिया द्वारा चुनाव लड़ने के लिए चिन्हित किए गए उम्मीदवारों को लेकर दोनों दलों के ताकतवर और जिताऊ उम्मीदवार सकते में हैं। इन उम्मीदवारों में कई ऐसे हैं जिन्हें अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने चुनाव लड़ने का भरोसा दिया था। लेकिन ऐसे तमाम लोगों को टिकट नहीं मिला। ऐसे में अब इन उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने की उम्मीदें खत्म हो गईं।

अब मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलन्दशहर, सहारनपुर, रामपुर के ऐसे तमाम रालोद और सपा के नेता पार्टी नेताओं के फैसले से खफा होकर घोषित उम्मीदवारों के खिलाफ माहौल बनाने में जुट गए हैं। इन खफा लोगों का कहना है कि पैसे वाले लोगों को टिकट मिला है। जिन्होंने एक घंटे भी पार्टी के लिए काम नहीं किया, वह एक दिन जयंत से मिलकर चुनाव लड़ने के लिए सिंबल पा गए, लेकिन दस वर्षों से पार्टी के लिए काम करने वाले छपरौली और बागपत के कार्यकर्ता ओर नेताओं की अनदेखी की गई।

इसी तरह अखिलेश यादव के टिकट वितरण पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अपने स्वार्थ के लिए अखिलेश यादव ने इमरान मसूद और भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर तक को धोखा दे दिया। अखिलेश यादव के कहने पर ही इमरान मसूद कांग्रेस से नाता तोड़कर सपा में आए थे, लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें टिकट नहीं दिया। अब इमरान मसूद कहीं के नहीं रहे। सपा उन्हें टिकट दे नहीं रही है और जिस कांग्रेस में उनका टिकट पक्का था उसे वह छोड़ चुके हैं। कुछ ऐसा ही व्यवहार अखिलेश यादव ने भीम आर्मी के चंद्रशेखर के साथ भी किया।

 

अखिलेश ने उनके साथ चुनावी गठबंधन करने से मना कर दिया। दूसरी तरफ सपा की ओर से जारी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में अपराधियों, दंगाइयों और माफियाओं की भरमार है। जिसे लेकर अब पश्चिम यूपी में सपा मुखिया का खूब आलोचना हो रही है। सपा नेताओं का असंतोष और आम लोगों की नाराजगी अखिलेश-जयंत दोनों को ही नुकसान पहुंचाएगा। खासकर अखिलेश के लिए यह अधिक नुकसानदेह साबित होगा। राजनीतिक विश्लेषक भी पश्चिम यूपी में सपा नेताओं के इस असंतोष को लेकर हैरत में हैं।

लगभग दो दशक बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसान के मिल रहे समर्थन से उत्साहित होकर रालोद ने अपनी शर्तों पर सपा से चुनावी समझौता किया। इस चुनावी समझौते से पश्चिम यूपी में रालोद और सपा दोनों को चुनावी लाभ दिख रहा था। इसे देखते हुए ही अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने ‘यूपी बदलो’ का साझा नारा बुलंद किया। अखिलेश यादव के शासन में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे के दुष्परिणामों को लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव अभी भी भयभीत हैं।

अखिलेश नहीं चाहते कि इन चुनावों में सपा के उम्मीदवारों को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़े, इसीलिए विधानसभा चुनावों के ठीक पहले सपा मुखिया ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गन्ना पट्टी ही एक तरह से रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के हवाले कर दी। लेकिन जिस तरह से जिताऊ उम्मीदवारों के नाम पर पैसे वाले और दबंग लोग टिकट पा गए, वह पश्चिम यूपी के लोगों को पसंद नहीं आ रहा है।

लोगों की नाराजगी को देखते हुए जयंत चौधरी ने बागपत और छपरौली के नाराज लोगों को अपनी कोठी पर बुलाकर उन्हें मनाया तो अखिलेश यादव ने अपने चहेते लोगों की नाराजगी को देखते हुए गुपचुप तरीके से टिकट देना शुरू किया है।

जिसके तहत उन्होंने कई उम्मीदवारों को जिले स्तर से पार्टी का सिंबल दिया है। अपने चहेतों के खफा होने पर अखिलेश और जयंत द्वारा अपनाए जा रहे तरीकों के चलते इस बार इस इलाके में चुनावी लड़ाई और भी रोचक हो गई है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनाव किसान आंदोलन के नाम पर लड़ा जा रहा था, लेकिन असलियत में चुनाव अपराधियों और दंगाइयों के हाथ में चला गया। यह विरोधाभास और नेताओं की अंतर्कलह सपा रालोद गठबंधन को बहुत नुकसान पहुंचाने वाली है।

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