किसान आंदोलन : अखिलेश और मायावती का केंद्र सरकार पर हमला
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले कई दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं। किसान आंदोलन के बीच पूर्व मुख्यमंत्री व बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है। ट्वीट कर दोनों नेताओं ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला है। अखिलेश यादव ने लिखा, ये कृषि कानून नहीं भाजपा का शिकंजा हैं।हैं।
केन्द्र की सरकार को, हाल ही में देश में लागू तीन नए कृषि कानूनों को लेकर आन्दोलित किसानों के साथ हठधर्मी वाला नहीं बल्कि उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाकर उनकी माँगों को स्वीकार करके, उक्त तीनों कानूनों को तत्काल वापस ले लेना चाहिए, बीएसपी की यह माँग।
— Mayawati (@Mayawati) December 19, 2020
बहुजन समाजा पार्टी की अध्यक्ष व यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने किसानों का समर्थन करते हुए शनिवार को ट्वीट किया है। मायावती ने लिखा, केन्द्र की सरकार को, हाल ही में देश में लागू तीन नए कृषि कानूनों को लेकर आन्दोलित किसानों के साथ हठधर्मी वाला नहीं बल्कि उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाकर उनकी मांगों को स्वीकार करके, उक्त तीनों कानूनों को तत्काल वापस ले लेना चाहिए, बीएसपी की यह मांग है।
वहीं, दूसरी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ट्वीट कर केंद्र सरकार पर हमला बोला है। अखिलेश यादव ने लिखा, भाजपा ने कृषि-क़ानून बनाने से पहले किसानों के कानों को ख़बर तक ना होनी दी, अब किसान सम्मेलन’ करके इसके लाभ समझाने का ढोंग कर रहे हैं।
सच तो ये है कि किसानों का सच्चा लाभ स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू होने से होगा, तभी आय दुगुनी हो सकती है। ये कृषि-क़ानून नहीं, भाजपा का शिकंजा हैं।
भाजपा ने कृषि-क़ानून बनाने से पहले किसानों के कानों को ख़बर तक न होनी दी, अब ‘किसान सम्मेलन’ करके इसके लाभ समझाने का ढोंग कर रहे हैं. सच तो ये है कि किसानों का सच्चा लाभ स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू होने से होगा, तभी आय दुगुनी हो सकती है.
ये कृषि-क़ानून नहीं भाजपा का शिकंजा हैं. pic.twitter.com/fa57UfyTHX
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 19, 2020
बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर किसान 26 नवंबर से लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। वे केंद्र सरकार से तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है।