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सपा-रालोद के टिकट बंटवारे से जाट नाराज, किसानों से किए वादे भूल गए अखिलेश-जयंत

Jat angry over SP-RLD ticket distribution, Akhilesh-Jayant forgot promises made to farmers;क्या अपने ही बुने जाल में फंस गई सपा?

By RNI Hindi Desk 
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प्रभात रंजन दीन की कलम से

लखनऊ: समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन की पहली सूची में मुस्लिमों को तरजीह देने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ गया है। इससे किसान और खासकर जाट अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं और धीरे-धीरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। कई जगह इस आग की आंच सपा-रालोद नेतृत्व को महसूस भी होने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस गई है। सपा और रालोद के साझा प्रत्याशियों की पहली सूची अब सपा-रालोद गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है। कुछ समय पहले तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह के माहौल और समीकरण का गुब्बार फूलता हुआ दिख रहा था और समाजवादी पार्टी के फूले हुए बयान सामने आ रहे थे, वह अब पिचकता जा रहा है।

किसान और रालोद समर्थकों को उम्मीद थी कि जयंत चौधरी ज्यादा से ज्यादा जाट समुदाय और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट देंगे, लेकिन सपा-रालोद की पहली सूची में 29 में से 9 मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशियों को मैदान में उतारने से जाटों और किसानों की नाराजगी सतह पर दिखने लगी है। जाट समुदाय के लोग अब खुलेआम अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं और कह रहे हैं कि टिकट बंटवारे से उनकी उम्मीदों पर कुठाराघात किया गया है। 29 में से 20 सीटों पर ब्राह्मण, गुर्जर, ओबीसी और दलित सभी की हिस्सेदारी है। ऐसे में किसी भी वर्ग को ज्यादा से ज्यादा 3 से 5 पांच सीटें ही मिल सकती हैं। किसान आन्दोलन के दौरान सपा-रालोद ने जाटों और किसानों को बड़ी हिस्सेदारी देने का वादा किया था, जिसे चुनाव आने पर पूरा नहीं किया गया। कैराना से सपा के नाहिद हसन को टिकट दिया गया, जिनके मुकदमों की लंबी फेरिस्त है और वह अभी जेल में है। कहने के लिए नाहिद का नाम काट कर उसकी बहन इकरा का नाम लिस्ट में जोड़ा गया, लेकिन असलियत यही है कि नाहिद हसन ही चुनाव लड़ रहा है। सपा ने किठौर से शाहिद मंजूर को उम्मीदवार बनाया है। मेरठ से सपा के रफीक अंसारी को टिकट दिए जाने से भी माहौल में गर्मी है। बागपत से रालोद के अहमद हमीद को उम्मीदवार बनाया गया, जबकि बागपत जाटों का गढ़ माना है। हापुड़ जिले की विधानसभा सीट धौलाना में भी जाटों और किसानों की बड़ी संख्या है जहां से सपा के असलम चौधरी को टिकट दिया गया है। इसी तरह बुलंदशहर से रालोद के हाजी यूनुस, स्याना से रालोद के दिलनवाज खान, कोल से सपा के सलमान सईद और अलीगढ़ से सपा के जफर आलम को टिकट दे दिया गया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत पर खास नजर रखने वाले कहते हैं कि प्रत्याशियों की पहली सूची देखने से ही समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन में मुसलमान वोटों को अपने पक्ष में करने की बेचैनी साफ नजर आती है। इस छटपटाहट में गठबंधन ने जाटों और किसानों की अनदेखी कर दी। समीक्षक आशंका जाहिर करते हैं कि कहीं प्रत्याशियों का चयन सपा-रालोद गठबंधन के लिए मिस-फायर न साबित हो जाए। सपा-रालोद की बेचैनी का फायदा भाजपा ने उठाया और बड़ी तसल्ली से विचार करके टिकट का बंटवारा किया। भाजपा ने टिकट बांटने में सभी वर्गों का ध्यान रखा। 2013 के साम्प्रदायिक दंगों को मुजफ्फरनगर आज भी भूला नहीं है। कैराना से सपा के नाहिद हसन को टिकट देने से समाज में पड़ी दरार और चौड़ी ही हुई है। साथ ही गठबंधन की सूची में अपराधियों के जगह पाने से भी लोगों की नाराजगी बढ़ी है। जो लोग पिछले पांच साल से सुख-शांति का जीवन व्यतीत कर रहे थे, उन्हें अब पांच साल पहले के अपराधियों और माफियाओं के अत्याचार याद आने लगे हैं।

यही कारण है कि किसानों और जाटों के गुस्से की तपिश सपा-रालोद गठबंधन को महसूस होने लगी है। जगह-जगह विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं। ग्रामीणों और खासकर रालोद के समर्थकों विरोध की खबरें आने लगी हैं। लोग सड़क पर आकर विरोध कर रहे हैं। मेरठ में तो जाट महासभा ने चुनाव बहिष्कार करने का ऐलान भी कर दिया है। मेरठ जिले की सात विधानसभा सीटों में सिर्फ एक सीट पर जाट नेता को टिकट दिए जाने से जाट समुदाय सपा-रालोद नेतृत्व से नाराज है। जाट और मुस्लिम बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रभाव कम करके की चाह में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन किया। दोनों दलों ने मेरठ और मुजफ्फरनगर जिलों की सभी 13 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशी तय कर दिए हैं। गठबंधन ने साझा तौर पर मेरठ की सात में से चार विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार और सिर्फ एक सीट पर जाट उम्मीदवार दिया है। जाट समुदाय के लोगों ने सिवालखास सीट को बनाया प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। सिवालखास विधानसभा सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी देकर रालोद ने अपने समर्थक जाट समुदाय का गुस्सा और भड़का दिया है। जाट महासभा ने सपा-रालोद गठबंधन को गलती नहीं सुधारने पर चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दे दी है। गठबंधन ने मेरठ कैंट विधानसभा क्षेत्र से मनीषा अहलावत, सरधना विधानसभा सीट से अतुल प्रधान और हस्तिनापुर सीट से पूर्व विधायक योगेश वर्मा को टिकट दिया है। इनमें एक भी प्रत्याशी जाट समुदाय से नहीं है।

नाराजगी की बड़ी वजह यह भी है कि रालोद ने सिवालखास सीट से जिस गुलाम मोहम्मद को अपना प्रत्याशी बनाकर उतारा है वह समाजवादी पार्टी का पूर्व विधायक है। रालोद ने मोहम्मद को अपने चुनाव चिन्ह पर उतार दिया है। जाट समुदाय के लिए यह दोतरफा झटके की तरह है। रालोद कार्यकर्ता सिवालखास सीट पर किसी जाट नेता के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन गुलाम मोहम्मद का नाम सामने आते ही उनकी नाराजगी बाहर आ गई। जाट समुदाय का मानना है कि करीब नौ दशक से चौधरी परिवार की राजनीति का केंद्र रही सिवालखास सीट पर किसी जाट की जगह मुसलमान को उम्मीदवारी दी गई, जबकि यह उम्मीदवार रालोद का अपना भी नहीं था। मेरठ शहर से सपा विधायक रफीक अंसारी, दक्षिण विधानसभा और किठौर से पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर को टिकट मिलने से भी जाटों में खासी नाराजगी है।

जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष रोहित जाखड़ ने जाट समाज के साथ बैठक के बाद यह ऐलान किया कि कि सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट बंटवारे में गलती नहीं सुधारी और जाट समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया तो उनके प्रत्याशियों का बहिष्कार किया जाएगा। जाखड़ ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर जाटों के अपमान का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि रालोद ने सपा के साथ गठबंधन तो कर लिया, लेकिन अखिलेश इसे जयंत चौधरी की मजबूरी समझने की भूल नहीं करें। जाट नेता ने धमकी दी कि अगर कृषि कानून वापस लेने की मांग पर डेढ़ साल तक आंदोलन करके केंद्र सरकार को झुकाया जा सकता है तो समाजवादी पार्टी को उसकी सही जगह दिखाने में भी देर नहीं लगेगी।

इन स्थितियों को देखते हुए यह समझा जा सकता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों के बीच समीकरण साधने की अखिलेश यादव की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद भाजपा के कब्जे में गई राजनीतिक जमीन वापस पाने की अखिलेश के सामने बड़ी चुनौती थी, लेकिन इसमें अखिलेश चूकते दिखाई दे रहे हैं। उनके सामने चुनौती यह भी है कि मुजफ्फरनगर जिले की छह में से एक भी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी नहीं देकर भाजपा की ध्रुवीकरण की संभावित रणनीति पर पानी फेरने का दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए। अखिलेश के सामने अब अधर की स्थिति है। अगर वे मेरठ में नाराज जाटों को खुश करने के चक्कर में प्रत्याशी बदलते हैं तो काफी संभव है कि मुजफ्फरनगर में अपने समुदाय का एक भी प्रत्याशी नहीं पाकर मुसलमान कहीं बिदक न जाए। लेकिन इसके लिए भी अब समय नहीं रहा।

केंद्रीय मंत्री संजीव बालयान ने कहा कि जाट समाज इस अपमान को कभी नहीं भूलेगा, क्योंकि तुष्टीकरण की राजनीति की कलई खुल गई और सपा-रालोद का असली चेहरा जनता के सामने आ गया। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्या पूरा प्रदेश ही अखिलेश की माफियापरस्ती और फरेब का करारा जवाब देने को तैयार है। मौर्य ने कहा कि चुनाव के वक्त माफियाओं और अपराधियों का गिरोह तैयार करने के बजाय अखलेश यादव अगर पांच साल जनता के बीच जाते और उनके सुख-दुख में शामिल होते तो उन्हें धरातल की जानकारी होती। अखिलेश ने जिस तरह पेशेवर अपराधियों और माफियाओं को टिकट दिये हैं, उसे राज्य की जनता देख रही है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश के लोग इन करतूतों को देख कर प्रदेश को ‘दंगा मुक्त प्रदेश’ और ‘सपा मुक्त प्रदेश’ बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं। पिछली सरकार में जो माफिया और गुंडे शांति और सौहार्द के लिए खतरा बने थे, उन दंगाइयों के पोस्टर सार्वजनिक स्थानों पर लगाए गए और उनकी सम्पत्ति से वसूली कर देश के समक्ष नजीर पेश की गई। साल 2017 से पहले समाजवादी पार्टी जिन अपराधियों, गुंडों और दंगाइयों को प्रोत्साहित करती थी इन्हीं कुख्यात बदमाशों के विरुद्ध सरकार ने निडर होकर अभियान चलाया। साल 2019 में राजधानी लखनऊ में सीएए और एनआरसी के विरुद्ध किए गए हिंसक प्रदर्शन की याद दिलाते हुए योगी ने कहा कि राजधानी लखनऊ को नफरत की राजनीति से दहलाने और जलाने वाले दोषियों के खिलाफ प्रदेश सरकार ने सख्त कानूनी कार्रवाई की। सरकारी सम्पत्ति का नुकसान करने वालों की निजी सम्पत्ति से नुकसान को भरपाई की गई। उन्होंने कहा कि जिनका मूल चरित्र ही अलोकतांत्रिक, आपराधिक वंशवादी हो, उनके मुंह से लोकतंत्र और विकास की बात हास्यास्पद है। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की सूची सपा के ‘दंगाई प्रेमी’ और ‘तमंचावादी’ होने की पुष्टि करती है। योगी ने कहा कि पहले पुलिस भागती थी, अपराधी भगाते थे। लेकिन आज पुलिस दौड़ाती है और माफिया भाग रहा है। मुजफ्फरनगर के जिन दंगाइयों को मुख्यमंत्री सम्मानित करते थे, आज वे जान की भीख मांग रहे हैं। मुख्यमंत्री ने अपने कैराना दौरे की एक रोचक घटना सुनाई। उन्होंने बताया कि 2017 में सरकार बनने के बाद कैराना के एक परिवार से उनकी भेंट हुई थी। वह लौटना चाहते थे, लेकिन डर रहे थे। उन्हें आश्वासन देकर वापस कैराना लौटने के लिए कहा गया। वह परिवार लौटा। अभी तीन माह पहले जब योगी कैराना गए तो उस परिवार से मिले। परिवार बहुत खुश था। वहां कक्षा छह में पढ़ने वाली एक बेटी ने बताया कि कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन पता चला है कि एक गुंडा जमानत पर छूटा है और चौराहे पर घूम रहा है। इस बारे में अधिकारियों से पूछताछ की गई। अगले दिन अखबारों में खबर छपी कि वह गुंडा अपनी जमानत रद्द करवा कर फिर से जेल चला गया। योगी ने कहा कि यूपी को ऐसी ही कानून-व्यवस्था की जरूरत थी।

बसपा नेता सलमान जैदी और सपा नेता रघुपाल सिंह भदौरिया भाजपा में शामिल

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी और राष्ट्रवादी समतावादी पार्टी ने शनिवार को भाजपा में अपना विलय कर लिया जबकि चार संगठनों ने बिना शर्त समर्थन दिया है। दूसरी खबर यह है कि मुजफ्फरनगर के बसपा के बड़े मुस्लिम नेता सलमान जैदी और मैनपुरी के सपा नेता रघुपाल सिंह भदौरिया भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा कार्यालय में ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने दोनों नेताओं को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कराई। डॉ. वाजपेयी ने इस अवसर पर कहा कि जैदी ने सपा सरकार में मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान अल्पसंख्यकों पर हुए अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया था। राजनीतिक परिवार से आने वाले जैदी की पत्नी ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं, जबकि जैदी 2017 के विधानसभा चुनाव में चरखावत से प्रत्याशी रह चुके हैं। इसी तरह मैनपुरी में समाजवादी पार्टी के स्तंभ और प्रदेश सचिव रहे रघुपाल सिंह भदौरिया भी भाजपा में शामिल हो गए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष डॉ. एन.पी. सिंह और राष्ट्रीय समतावादी पार्टी ने डॉ. वाजपेयी को अपने-अपने दलों का विलय पत्र सौंपा। जनतांत्रिक पार्टी का गठन पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने किया था और वह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। बाद में वह भाजपा में लौट आए थे। डॉ. वाजपेयी ने कहा कि राष्ट्रीय समतावादी पार्टी पूर्वांचल के 25 जिलों में निषाद समाज के लिए लगातार काम कर रही थी।

 

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