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महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़।

By RNI Hindi Desk 
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महाराष्ट्र की राजनीतिक में पिछले एक महीने से चल रहा शाह-मात का खेल कुछ ही घंटों मे अचानक बदल गया। महाराष्ट्र की राजनीति ने ऐसी करवट ली जिसके बारे में किसी ने सपने में भी सोचा नहीं था। शुक्रवार देर शाम तक ऐसा लग रहा था कि मानों शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों ही दल एक साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी। लेकिन शनिवार को माजरा बिल्कुल पलट गया और एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने राजनीति में ऐसी करवट बदली की अपनी ही पार्टी को तोड़ दिया। अजित पवार ने बीजेपी को समर्थन दे दिया और महाराष्ट्र के डेप्युटी सीएम बन गए।

अपने भतीजे के इस दाव से शरद पवार औऱ उनका परिवार भौचक है उधर शरद पवार ने कहा है कि बीजेपी को समर्थन देने का अजित का फैसला निजी है। जबकि शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा है कि अब जिंदगी में किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है। अजित पवार के इस कदम से शरद पवार भले ही आहत हों लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो इससे पहले भी महाराष्ट्र के नवनियुक्त डेप्युटी सीएम ने अपने चाचा के इतिहास को ही दोहराया है।

दरअसल साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को हार मिली थी और जनता पार्टी की सरकार बनीं थी। वहीं महाराष्ट्र मे भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री शंकर राव च्वहाण ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। और वसंत दा पाटिल उनकी जगह महाराष्ट्र के सीएम बने थे। इस घटना के बाद कांग्रेस हो भागो में बंट गया था औऱ कांग्रेस पार्टी (U) तथा कांग्रेस पार्टी (I) में बंट गई थी।

इस दौरान शरद पवार के गुरू यशवंत राव पाटिल कांग्रेस यू में शामिल हो गए थे और शरद पवार भी कांग्रेस यू का हिस्सा थे।  लेकिन 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव हुआ था और कांग्रेस के दोनों घड़ों ने अलग- अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन बाद में दोनों ही धड़ों ने जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए एक साथ मिलकर सरकार बनाई थी। जिसमें वसंतदा पाटिल सीएम बनें थे औऱ इस सरकार में शरद पवार उद्योग मंत्री औऱ श्रम मंत्री बने थे।

लेकिन 1978 में शरद पवार ने अपने गुरू के इशारे पर कांग्रेस यू से खुद को अलग कर लिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई थी औऱ 38 साल की उम्र में शरद पवार राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे। बाद में यशवंत राव पाटिल भी शरद पवार की पार्टी मे शामिल हो गए थे। लेकिन इंदिरा गांधी के दोबारा सत्ता में आने के बाद 1980 में पवार के नेतृत्व वाली प्रोग्रेसव डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार गिर गई।

लेकिन राजनीतिक के ताजा हालात की बाद करें तो अजित पवार ने भी अपने चाचा शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को तोड़कर बीजेपी का समर्थन किया है औऱ बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है। अभी एनसीपी के 54 विधायक है और ऐसा दावा किया जा रहा है कि अजित पवार के साथ 35 विधायक है। जबकि राजनीति गलियारे में ऐसी चर्चा है कि शरद पवार ने अपने भतीजे के साथ मिलकर पर्दे के पीछे ये खेल खेला है। लेकिन शरद पवार ने इसका खंडन किया है।

शरद पवार ने ट्वीट कर कहा कि, अजित पवार का बीजेपी को सरकार समर्थन देने का फैसला उनका निजी फैसला है, इसका नैशनलिस्ट पार्टी से कोई संबंध नही है और हम अधिकारिक रूप से यही कहना चाहते हैं कि अजित पवार के इस फैसले का न तो हम समर्थन करते हैं और ना ही सहमति देते हैं। इस बीच एनसीपी चीफ शरद पवार शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे से साथ मिकर प्रेस कॉन्फ्रेस भी करने वाले हैं।

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