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खंडित समीकरणों में फंसी उत्तराखंड की सियासत

Politics of Uttarakhand stuck in fractured equations;हरक से 'कांग्रेस' पर फरक, 'भाजपा' बेधड़क, 'आप' नाप रही सड़क

By RNI Hindi Desk 
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प्रभात रंजन दीन की कलम से

लखनऊ: हरक सिंह रावत के निष्कासन से भाजपा पर जो असर पड़ सकता था, वह कांग्रेस के अनिर्णय के कारण हल्का पड़ गया। कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि हरक सिंह रावत का क्या और कैसे इस्तेमाल करना है। कांग्रेस नेतृत्व के इस अनिश्चय ने भाजपा को मनोवैज्ञानिक-संशय की स्थिति से भी उबारा और आम लोगों के मन से भी हरक की हनक कम कर दी। हरक को लेकर कांग्रेस में कई खेमे उभर कर सामने आ गए, उत्तराखंड के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को हरक का दोबारा प्रवेश स्वीकार नहीं। जबकि कांग्रेस के कुछ नेता हरक के बहाने कुछ वरिष्ठों का कद कम करने की कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत हरक सिंह रावत के कांग्रेस में अतिशय महत्व दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। हरीश रावत का कहना है कि हरक सिंह रावत को अपनी पुरानी गलतियां स्वीकार कर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए, तभी कांग्रेस नेतृत्व उनकी कांग्रेस में वापसी को लेकर कोई निर्णय ले। हरीश रावत इस मसले पर कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष तन कर खड़े हैं। कांग्रेस नेतृत्व हरीश रावत की उपेक्षा करने की स्थिति में नहीं है। हरीश रावत के मन में अब भी वह कसक बाकी है जब हरक सिंह रावत ने हरीश रावत की सरकार गिरवाई थी। कांग्रेस नेतृत्व भी उनकी इस कसक से अलग नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व राष्ट्रीय कद के नेता हरीश रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर ही चुनाव में कामयाब होना चाहता है। ऐसे में हरक सिंह रावत की कांग्रेस में आमद काफी सोच-समझ के बाद ही होने वाली है। यह भी हो सकता है कि कांग्रेस में उनकी आमद तो हो जाए, पर वे चुनाव न लड़ें। संभव है कि हरक की जगह उनकी बहू को चुनाव लड़वाया जाए।

harish rawat

हरीश रावत कांग्रेस प्रचार समिति के प्रमुख भी हैं। भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत को फिर से कांग्रेस पार्टी में शामिल करने का हरीश रावत विरोध कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान और प्रदेश नेतृत्व का एक खास वर्ग हरक सिंह रावत को कांग्रेस पार्टी में वापस लेने पर जोर दे रहा है। कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रीतम सिंह और राज्य के एआईसीसी प्रभारी देवेंद्र यादव हरक सिंह रावत को कांग्रेस में फिर से शामिल करने के लिए जोर दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह स्वामी प्रसाद मौर्य अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे थे, उसी तरह उत्तराखंड में हरक सिंह रावत अपने तीन रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे थे। मौर्य और रावत में बस फर्क इतना रहा कि मौर्य का खुद का टिकट कटने वाला था और उनका राजनीतिक अस्तित्व संकट में था।

हरक सिंह रावत कोटद्वार विधानसभा सीट से विधायक हैं, लेकिन वे कोटद्वार सीट छोड़ना चाह रहे थे। कोटद्वार से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस नेता सुरेंद्र सिंह नेगी को लेकर हरक सिंह संशय में थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सुरेंद्र सिंह नेगी ने उस समय के भाजपा उम्मीदवार भुवनचंद खंडूरी को हराया था। खंडूरी को हराने के बाद सुरेंद्र सिंह नेगी कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार में मंत्री भी बनाए गए थे। वर्ष 2017 में मोदी लहर में कोटद्वार से कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी को हरक सिंह रावत ने हराया। लेकिन साल 2022 में बदली हुई स्थिति देखते हुए हरक सिंह रावत कोटद्वार सीट बदलना चाह रहे थे। हरक सिंह केदारनाथ सीट पर शिफ्ट होना चाहते थे, लेकिन केदारनाथ सीट से हरक सिंह रावत का विरोध हो रहा था। हरक सिंह रावत के साथ भाजपा में शरीक हुईं शैला रानी रावत ही हरक सिंह के केदारनाथ सीट पर आने के प्रस्ताव का विरोध कर रही थीं। शैला रानी 2012 में कांग्रेस से केदारनाथ की विधायक थीं। भाजपा नेतृत्व हरक सिंह रावत को केदारनाथ सीट पर शिफ्ट करने के लिए तैयार था, लेकिन हरक अपनी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं के लिए लैंसडाउन विधानसभा से टिकट दिलाने के लिए भाजपा नेतृत्व पर काफी दबाव बना रहे थे। लैंसडाउन के भाजपा विधायक दिलीप रावत इसका विरोध कर रहे थे। हरक सिंह रावत दिलीप रावत को कोटद्वार सीट से लड़ने के लिए कह रहे थे, लेकिन इसे मानने के लिए दिलीप सिंह रावत तैयार नहीं थे। हरक सिंह रावत को लेकर भाजपा नेतृत्व का असमंजस देखते हुए उनके कांग्रेस में जाने के कयास जोर पकड़ रहे थे। यह तब और पुष्ट होने लगा जब हरक सिंह रावत की करीबी सोनिया आनंद रावत कांग्रेस में शामिल हो गईं। लेकिन हरक सिंह कांग्रेस में औपचारिक तौर पर शामिल हों, उसके पहले ही भाजपा नेतृत्व के इशारे पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया और पार्टी ने छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। दिल्ली में हुई बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, उत्तराखंड के राज्य चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी समेत कुछ अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। हालांकि लैंसडाउन में मेडिकल कॉलेज की स्थापना का मसला लगातार टाले जाने के मसले पर हरक सिंह रावत ने पहले ही मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने तब उन्हें मना लिया था और कुछ दिन बाद ही अब उन्हें रुसवा भी कर दिया।

भाजपा से निष्कासित किए जाने के बाद हरक सिंह रावत ने कहा कि 10 मार्च को जो नतीजे आएंगे उसमें भाजपा सत्ता से बाहर होगी और कांग्रेस 40 सीटों के साथ सरकार बनाएगी। यह कहने के बावजूद हरक सिंह काफी भावुक थे। उन्होंने कहा कि भाजपा ने उन्हें धोखा दिया है। रावत बोले, ‘अमित शाह ने अंतिम समय तक दोस्ती रखने का वादा किया था, मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने अमित शाह से दोस्ती निभाते हुए पार्टी नहीं छोड़ी बल्कि उन्होंने मुझे पार्टी से निकाला। मैंने भाजपा से इतना ही तो कहा था कि मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता। मेरी बहू अनुकृति को चुनाव लड़वा दें। तब तो प्रह्लाद जोशी ने भी यही कहा था कि हम इस पर विचार करेंगे। इसमें मैंने पार्टी विरोधी क्या बात कह दी थी कि नेतृत्व ने मुझे पार्टी से निकाल दिया?’

उत्तराखंड महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सरिता आर्य और उनके कांग्रेसी समर्थकों के भाजपा में आने से भाजपा का हरक-शॉक कुछ कम हुआ। नैनीताल की पूर्व विधायक और महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य भाजपा में शामिल हो गईं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक जब उन्हें भाजपा में शामिल कर रहे थे तब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी वहीं मौजूद थे। सरिता आर्य के भाजपा में शामिल होने से प्रदेश भाजपा नेतृत्व कितना प्रसन्न था, इसी से पता चलता है। सरिता आर्य के साथ उत्तराखंड महिला कांग्रेस की प्रदेश उपाध्यक्ष रेखा बोरा गुप्ता और वंदना गुप्ता भी भाजपा में शामिल हुई हैं।

बहरहाल, हम यह देखते चलें कि उत्तराखंड का चुनावी गणित क्या कहता है। पर्वतीय प्रदेश में 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव होना है। इसके लिए सत्ताधारी भाजपा ने प्रदेश की सभी 70 सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम चुनाव समिति को सौंप दे दिए हैं। इस लिस्ट पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को निर्णय लेना है। उत्तराखंड की 28 सीटों पर स्थिति स्पष्ट है। 25 सीटों पौड़ी, कोटद्वार, थराली, कर्णप्रयाग, घनसाली, प्रतापनगर, टिहरी, झबरेड़ा, लक्सर, पिरान कलियर, राजपुर रोड, चम्पावत, लोहाघाट, नैनीताल, हल्द्वानी, रामनगर, जागेश्वर, अल्मोड़ा, रानीखेत, द्वारहाट, गंगोलीहाट, बाजपुर, काशीपुर, रुद्रपुर और गंगोत्री को लेकर पेंच फंसा है। 10 से 15 मौजूदा विधायकों को चुनावी रेस से अलग भी किया जा सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के भी डोईवाला सीट से चुनाव लड़ने को लेकर स्थिति अभी साफ नहीं है।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 56 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उससे पहले वहां कांग्रेस की सरकार थी। चुनाव से पहले उत्तराखंड विधानसभा के गणित पर नजर डालें तो पाएंगे कि प्रदेश में भाजपा के 56 और कांग्रेस के 10 विधायक हैं। इसे अलावा दो सीटों पर निर्दलीय है और दो सीटें खाली हैं। एक सीट पर एंग्लो इंडियन समुदायक के नामित विधायक हैं। 2022 का चुनाव भी मुख्‍य तौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। प्रदेश के युवाओं को साधने के लिए भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश का मुख्‍यमंत्री बनाया। हालांकि जानकार यह भी कहते हैं कि जातीय समीकरण साधने के लिए राजपूत चेहरे की जरूरत थी। इस लिहाज से पुष्कर सिंह धामी को पार्टी नेतृत्व ने चुना। धामी कम उम्र के मुख्यमंत्री हैं और युवाओं पर अच्छी पकड़ है। चुनाव पूर्व हुए कुछ सर्वे बताते हैं कि उत्तराखंड के 40 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में हैं तो 36 प्रतिशत मतदाता कांग्रेस के पक्ष में हैं। इसके अलावा 13 फीसदी मतदाता आम आदमी पार्टी की तरफ हैं। अन्य के खाते में करीब 11 फीसदी मतदाताओं का झुकाव है। सर्वे में साफ है कि उत्तराखंड के चुनावी रण में असल मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच ही है। आम आदमी पार्टी भी हाल के दिनों में सड़कों पर सक्रिय दिखी, लेकिन इस पार्टी को प्रदेश की सियासत पर पकड़ बनाने में अभी टाइम लगेगा। ‘आप’ को अभी कुछ वर्ष और पर्वत की सड़क नापनी होगी। मौजूदा सर्वेक्षण के हिसाब से भाजपा के खाते में 33 से 39 सीटें, कांग्रेस के हिस्से में 29 से 35 सीटें और ‘आप’ के खाते में 1 से 3 सीटें जा सकती हैं। यानी, भाजपा अव्वल तो रहेगी, लेकिन सरकार बनाने में मुश्किलें पेश आएंगी। उत्तराखंड के कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस सर्वेक्षण से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि टक्कर तो होगी, लेकिन भाजपा अपनी सरकार बनाएगी। चलिए, यह तो समय ही बताएगा।

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