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दिल्ली की गद्दी बचा पाएंगे केजरीवाल?

By RNI Hindi Desk 
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दिल्ली विधानसभा के चुनावों की घोषणा हो चुकी है। तमाम राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव की तैयारियों के लिए कमर कस ली है। हर राजनीतिक पार्टी का एक ही लक्ष्य है दिल्ली की गद्दी पर काबिज होना। लेकिन दिल्ली किसके लिए दूर है और किसके लिए पास ये जानने के लिए 11 फरवरी तक का आपको इंतजार करना होगा।

2019 का दिल्ली विधानसभा चुनाव 2014 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले बिल्कुल अलग है। 2014 में अरविंद केजरीवाल दिल्लीवालों के लिए हीरो बनकर ऊभरे थे। तब दिल्ली की जनता कांग्रेस की शीला सरकार से त्रस्त थी। दिल्ली की जनता बेरोजगारी, महंगाई, करप्शन, महंगी बिजली, पानी की बढ़ी कीमतों समेत कई चीजों से परेशान थी। जबकि कांग्रेस 15 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज थी और उस समय कांग्रेस के खिलाफ लहर चल रही थी। यह वही दौर था जब अन्ना आंदोलन से निकलकर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई थी और दिल्ली की जनता से वादा किया था कि उन्हें एक मौका दिया जाए वह इन सारी समस्याओं का समाधान करेंगे।

दिल्ली की जनता के पास भी कांग्रेस और बीजेपी के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था। 2014 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ और जनता ने आम आदमी पार्टी को सर आंखों पर बिठाया लेकिन केजरीवाल खुद की बदौलत सत्ता तक पहुंच नहीं सके। इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने फिर उसी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई जिसके खिलाफ वो चुनावों में जनता से वोट मांगी थी। लेकिन गठबंधन वाली यह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी, अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और सरकार गिर गई। इसके बाद साल 2015 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ और केजरीवाल पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए। अब केजरीवाल के 5 साल पूरे हो चुके हैं और एक बार फिर चुनाव सर पर है।

2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल का सपना पूरा हुआ और 67 सीटें जीतकर दिल्ली का ताज पहनने में उन्होंने सफलता हासिल की। लेकिन इसके बाद उनके बुरे दिन शुरू हो गए। दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद केजरीवाल पर अहंकारी होने का उनके ही नेताओं ने आरोप लगाने शुरू कर दिए। एक के बाद एक सीनियर नेताओं ने उनकी पार्टी से किनारा कर लिया और कुछ नेताओं को पार्टी से निकलने पर मजबूर कर दिया गया। शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव से लेकर एक लंबी लिस्ट है जिन्हें पार्टी से निकलने पर मजबूर कर दिया गया। तो कुछ नेताओं ने खुद ही केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए पार्टी के किनारा कर लिया। इतना ही नहीं इन पांच सालों में केजरीवाल सरकार के कई नेताओं पर कई तरह के आरोप भी लगे जिससे उनकी पार्टी की छवि खराब हुई।

2015 के दिल्ली विधानसभा के चुनावों को अगर देखा जाए तो कांग्रेस का वोट बैंक आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो गया था। यही कारण था कि केजरीवाल सत्ता तक पहुंच गए और कांग्रेस पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई। लेकिन इस बार का चुनाव बिल्कुल अलग होगा। 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ गया है जिसके बाद कांग्रेस एक बार फिर से अपने पारंपरिक वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश में जुट गई है। तो दूसरी तरफ बीजेपी भी दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए अपने तमाम पहलुओं को खोल दिया है। 8 फरवरी को वोटिंग होगी और 11 फरवरी को जब नतीजे आएंगे तब ये साफ होगा कि किसको जनता ने दिल्ली का ताज सौंपा है।

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