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MP News: CM डॉ. मोहन यादव ने किया बिरसा मुंडा प्रतिमान का अनावरण, जनजातीय गौरव दिवस पर विकास कार्यों का लोकार्पण

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बड़वानी जिले की पानसेमल तहसील के ग्राम मोरतलाई में भगवान बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर उनके प्रतिमान (मन) का अनावरण किया और विभिन्न निर्माण कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया।

By: Abhinav Tiwari 
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MP News: CM डॉ. मोहन यादव ने किया बिरसा मुंडा प्रतिमान का अनावरण, जनजातीय गौरव दिवस पर विकास कार्यों का लोकार्पण

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बड़वानी जिले की पानसेमल तहसील के ग्राम मोरतलाई में भगवान बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर उनके प्रतिमान का अनावरण किया और विभिन्न निर्माण कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया।

यह कार्यक्रम जनजातीय गौरव दिवस के तहत आयोजित किया गया, क्योंकि सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा के योगदान को सम्मानित करने के लिए हर साल 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।

अनावरण और शिलान्यास: मुख्यमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा के प्रतिमान का अनावरण किया और ग्राम मोरतलाई में कई विकास कार्यों का भूमिपूजन किया।

स्थान: यह कार्यक्रम बड़वानी जिले की पानसेमल तहसील के ग्राम मोरतलाई में हुआ।

अवसर: यह कार्यक्रम भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था, जिसे अब ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बड़वानी जिले की पानसेमल तहसील के ग्राम मोर तलाई में हेलीपैड पर रबड़ी का स्वाद चखा।

बिरसा मुंडा: जिनका संघर्ष समय से आगे था

बिरसा मुंडा एक ऐसे जननायक थे, जिन्होंने भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और गांधी जी से भी बहुत पहले अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष का प्रारंभ किया। भारत में जब संगठित स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत भी नहीं हुई थी, तब झारखंड के दूरस्थ इलाकों और जंगलों में—जहां संचार के साधन नगण्य थे—उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया और अंग्रेजी शासन को खुली चुनौती दी।

आदिवासी समाज उन्हें ‘धरती आबा’ यानी धरती पिता की उपाधि से सम्मानित करता है। उन्होंने “अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडू जाना” का नारा देकर स्वराज की अवधारणा को जंगलों, घाटियों और गांवों तक पहुंचाया।

वर्ष 1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आंदोलन के तेज फैलाव से घबराकर, तत्कालीन जिला मैजिस्ट्रेट ने पुलिस और सेना बुलवाई और डोंबिवाड़ी हिल पर हो रही सभा पर गोलीबारी करवा दी, जिसमें लगभग 400 लोग मारे गए। यह घटना 19 साल बाद हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के समान थी, परंतु इस घटना को इतिहास में वह स्थान नहीं दिया गया।

बिरसा मुंडा को पकड़ने के बाद अंग्रेजों ने निर्णय लिया कि उन्हें बेड़ियों में जकड़कर अदालत ले जाया जाए ताकि आमजन को पता चले कि अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने का क्या नतीजा होता है। परंतु यह दांव उल्टा पड़ गया—बिरसा को देखने के लिए रोड के दोनों ओर हजारों की संख्या में लोग जमा हो गए।

उन्हें तीन माह तक सोलिटरी कन्फाइनमेंट में रखा गया और यह भी कहा जाता है कि उन्हें स्लोपॉयज़न दिया गया। अंततः मात्र 25 वर्ष की आयु में वो शहीद हो गए।

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