सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली कई साइटों में यह दावा किया गया है कि सात वर्षों के रिसर्च के बाद गेहूं की नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फ्रूट बायोटेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट या नाभा ने विकसित किया है। नाभा के पास इसका पेटेंट भी है।
इस गेहूं के बोए जाने के बाद एक और बीमारियों से लड़ने की एक रामबाण औषधि प्राप्त होगी तो वही अपनी औसत के अनुसार आम गेहूं के मुकाबले 4 गुना ज्यादा कीमत पर बिकने के दौरान किसान भी इससे मालामाल हो सकते हैं।
वैसे तो इस गेहूं की खेती जैविक खेती में आती है लेकिन आम गेहूं की तरह इसकी पैदावार की जाती है जिससे अपनी औसत के दौरान लगाई गई लागत का 3 गुना ज्यादा दे प्राप्त होने से किसान को 3 गुना मुनाफा होने की भी उम्मीद जताई जा रही है।
काला गेहूं आम गेहूं के मुकाबले इससे हटकर होता है इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा होती है एंटीऑक्सीजन होते हैं इसमें एंथोसाइन ईस्ट नाम का एक तत्व होता है जो कि आम गेहूं के मुकाबले पांच से छः गुणा मात्रा होती है।
इसका कलर भी काला है और इसका आटा भी लगभग काला ही आता है यह जो भारत सरकार या केंद्र सरकार की योजना है कुपोषण रहित बच्चों की उसमें यह सबसे ज्यादा कारगर है इसमें काफी ऐसी हेल्प फ्रूट चीजें हैं जो बच्चों के लिए और आम आदमियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो कॉलेस्ट्रोल बीपी कैंसर जैसी बड़ी बीमारियां हैं उनकी रोकथाम करता है।
और इसके जो रेट है वह आम गेहूं के मुकाबले चार गुना है इसके रेट ₹100 से स्टार्टिंग है और अगर इसको अगर जैविक करते हैं तो इसकी रेट इससे भी ज्यादा हो जाते हैं। अगर स्वाद की बात करते हैं तो स्वाद की अगर बात करें तो यह आम गेहूं के मुकाबले सेम ही है इसको खाने में भी कोई दिक्कत नहीं है आम गेहूं की तरह इसको खा सकते हैं।
अगर रेट की बात करें तो रेट इसका कुछ ज्यादा है आम आदमी के लिए इसको लेकर डेली यूज़ करने के लिए इसको मेडिकल यूज किया जाए हफ्ते में दो या तीन दिन यूज़ करने के लिए बाकी दिन आप आम अनाज खा ले तो भी यह आपको फायदा बहुत करेगा।