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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े ये खास रहस्य नहीं जानते होंगे आप?

आज हम अपने पाठकों के लिए भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथे ज्योतिर्लिंग की जानकारी लाए हैं जो कि श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है।

By RNI Hindi Desk 
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आज हम अपने पाठकों के लिए भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथे ज्योतिर्लिंग की जानकारी लाए हैं जो कि श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग दो स्वरूप में मौजूद है। एक को ममलेश्वर के नाम से और दूसरे को ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ममलेश्वर नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर स्थित है। अलग होते हुए भी इनकी गणना एक ही तरह से की जाती है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे भी एक कथा है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं। वैसे तो इसकी स्थापना के लिए कथाएं प्रचलित हैं लेकिन यहां हम आपको ऋषि नारद मुनि की कथा सुना रहे हैं।

एक बार नारायण भक्त ऋषि नारद मुनि गिरिराज विंध्य पर्वत पर घूमते-घूमते पहुंच गए। वहां उनका स्वागत बड़े ही आदर-सम्मान के साथ हुआ। विन्ध्याचल ने कहा कि वो सर्वगुण सम्पन्न हैं। साथ ही कहा कि उनके पास किसी भी चीज की कमी नहीं है। उनके पास हर प्रकार की सम्पदा है। उनमें अंहकार भाव साफ नजर आ रहा था। इसी भाव में विन्ध्याचल नारद जी के समक्ष खड़े हो गए। श्री नारद जी को अहंकारनाशक भी कहा जाता है। ऐसे में उन्होंने विन्ध्याचल के अहंकार का नाश करने की बात सोची

नारद जी ने विन्ध्याचल से कहा कि उसके पास सब कुछ है। लेकिन मेरू पर्वत के बारे में तुम्हें पता है जो तुमसे बहुत ऊंचा है। उस पर्वत के शिखर इतने ऊंचे हो गए हैं कि वो देवताओं के लोकों तक पहुंचे चुके हैं। ऐसे में उन्हें ऐसा लगता है कि वो इस शिखर तक कभी नहीं पहुंच पाएगा। विध्यांचल से यह सब कहकर नारद जी वहां से प्रस्थान कर गए। हुए हैं। मुझे लगता है कि तुम्हारे शिखर वहां तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। इस प्रकार कहकर नारद जी वहां से चले गए। उनकी बात सुनकर विन्ध्याचल को बहुत दुख हुआ

इस पछतावे में विध्यांचल ने फैसला किया कि वो शिव जी की आराधना करेगा। उसने मिट्टी के शिवलिंग बनाए और वो भगवान शिव की कठोर तपस्या करने लगा। उसने कई महीनों तक शिव की आराधना की। शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे दर्शन दिए। साथ ही आशीर्वाद भी दिया। शिव जी ने विध्यांचल को वरदान मांगने को कहा। उसने भगवान शिव से कहा कि अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे कार्य की सिद्धि करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें।

शिव ने विन्ध्यपर्वत के मांगे गए वरदान को पूरा किया। उसी समय देवतागण तथा कुछ ऋषिगण भी वहां पहुंच गए। इन सभी ने अनुरोध किया कि वहां स्थित ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो जाए। इनके अनुरोध पर ही ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हुआ जिसमें से एक प्रणव लिंग ओंकारेश्वर और दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ

 

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