रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक मामले की सुनावई करते हुए कहा कि पिता को बेटे का खर्च सिर्फ 18 वर्ष तक ही नहीं बल्कि उसे स्नातक की डिग्री पाने तक उठाना होगा। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ग्रैजुएशन को अब बेसिक शिक्षा माना जाता है। इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा है। पीठ ने एक व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह 31 मार्च 2027 तक अपने बेटे की शिक्षा का खर्च उठाए। कोर्ट ने आगे कहा कि बच्चे को अपना स्नातक पूरा करने तक आर्थिक सहयोग की जरूरत है।
एक मामले में फैमिली कोर्ट ने सितंबर 2017 में आदेश दिय़ा था कि उस शख्स को हर महीने अपने बेटो को 20 हजार रुपये गुजारा-भत्ता देना पड़ेगा। आपको बता दें कि शख्स ने साल 1999 में पहली शादी की थी,जिससे इस शादी से उन्हें एक बेटा है।
व्यक्ति ने पहली पहली बीवी से साल 2005 में ही तलाक ले लिया था। शख्स कर्नाटक सरकार के स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी है। साल 2005 में पत्नी से तलाक के बाद कर्नाटक की फैमिली कोर्ट ने उन्हें हर महीने अपने बेटे के लिए 20 हजार रुपये खर्चा देने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ शख्स ने हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
इसके बाद शख्स सर्चोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाय़ा है, सर्वोच्च न्यायालय से भी उसको मायूसी ही मिली है। न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने भी गुरुवार को महत्वपूर्णँ निर्देश देते हुए कहा कि वह 31 मार्च 2027 तक अपने बेटे की शिक्षा का खर्च उठाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चे को अपना स्नातक पूरा करने तक आर्थिक सहयोग की जरूरत है।
आपको बता दें कि सर्चोच्च न्यायालय में शख्स की तरफ से वकील ने दलील दी कि उसने अपनी पहली पत्नी से तलाक इसलिए लिया था क्योंकि वह किसी और के साथ संबंध में थी। वकील के इस दलील को कोर्ट ने तुरंत यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसके लिए बच्चे को सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि बच्चे का इन सबसे क्या लेना-देना है और जब आपने दूसरी शादी की तो आपको पता होना चाहिए था कि आपका एक बेटा है जिसकी देखरेख आपको करनी है।
वहीं दूसरी तरप बच्चे और उसकी मां की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील गौरव अग्रवाल ने कहा कि बच्चे के पिता हर महीने कुछ कम राशि दें लेकिन वह बेटी की ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई तक यह राशि देते रहें। जिसके बीद पीठ ने इस सुझाव को सही ठहराते हुए गुजारे-भत्ते की राशि को घटाकर 10 हजार रुपये प्रति माह कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि हर वित्त वर्ष में शख्स को यह राशि 1000 रुपये बढ़ानी होगी।