नई दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान खुद को बीजेपी का हनुमान कहने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान आज राजनीति के मैदान में अकेले खड़े नजर आ रहे है। क्योंकि इनके अपनों ने ही इनसे बगावत कर ली। हालांकि इस बगावत का ये परिणाम निकला की अब चिराग को राजद और कांग्रेस का ऑफर आ रहा है। जो साथ मिलकर विपक्ष को मजबूत बनाने के साथ ही, तेजस्वी को सीएम बनवाने की भी बात कह रहे है।
आपको बता दें कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस की तरफ से चिराग पासवान को ऑफर मिला है कि वह मौजूदा हालात में एनडीए से अलग हों और विपक्ष का दामन मजबूत करने के लिए साथ आ जाएं।
तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनवाएं चिराग: राजद नेता
राष्ट्रीय जनता दल के विधायक भाई बिरेंद्र ने कहा है कि बिहार में अभी की राजनीतिक परिस्थिति में यह बिल्कुल अनुकूल है कि चिराग पासवान और तेजस्वी यादव एक साथ हाथ मिलाएं। भाई बिरेंद्र ने कहा कि चिराग पासवान को तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में मदद करनी चाहिए और उन्हें पार्टी की दिल्ली की राजनीति संभालनी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि, “आम लोगों की मांग है कि जो हालात लोक जनशक्ति पार्टी में हुए हैं उसके बाद दोनों नौजवान नेता चिराग और तेजस्वी को एक साथ आना चाहिए। चिराग पासवान को तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मदद करना चाहिए और उन्हें खुद राष्ट्रीय राजनीति संभालनी चाहिए”।
कांग्रेस ने भी दिया साथ आने का निमंत्रण
राष्ट्रीय जनता दल के अलावा कांग्रेस ने भी चिराग पासवान को ऑफर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा कि वह (चिराग) मौजूदा हालात में कांग्रेस में शामिल हो जाएं और विपक्ष को मजबूत करें।
प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा कि यही सही वक्त है, जब चिराग को कांग्रेस-महागठबंधन के साथ आना चाहिए। बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड को उनकी राजनीतिक औकात दिखाएं, अगर चिराग आते हैं तो कांग्रेस मजबूत होगी।
चाचा की बगावत के बाद अकेले हुए चिराग
आपको बता दें कि लोक जनशक्ति पार्टी के पास अभी कुल 6 सांसद हैं, लेकिन दिवंगत नेता रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस ने अपने साथ 5 सांसदों को लेकर अलग रुख अपना लिया। पांचों सांसदों ने पशुपति पारस को अपना नेता मान लिया, लोकसभा में भी अब संसदीय दल के नेता चिराग की जगह पशुपति पारस ही चुने गए हैं।
यही कारण है कि चिराग अब अपने ही पार्टी में अकेले हो गए हैं, चिराग ने इस विवाद के बाद अपने चाचा पशुपति पारस से मिलने की कोशिश भी की। हालांकि, इसमें सफलता नहीं मिल पाई। पशुपति पारस के मुताबिक, चिराग द्वारा एनडीए से अलग होने के फैसले और पार्टी की गतिविधियों को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराज़गी थी। ऐसे में पार्टी को बचाने के लिए यही सही कदम था।