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‘नाटो प्लस’ में भारत की हो सकती है एंट्री, अमेरिकी कांग्रेस ने की सिफारिश

By RNI Hindi Desk 
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सीनियर जर्नलिस्ट प्रताप राव की कलम से…

नई दिल्लीः चीन के साथ हालिया विवादों के चलते अमेरिका एिशया में भारत के साथ और मजबूत रिश्ता चाहता है। राष्ट्रपति जो बाइडेन और जनरल माइक मिनेहन भी भारत से सहयोग के पक्षधर हैं। इसी के चलते अमेरिकी कांग्रेस की सेलेक्ट कमेटी ने भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की सिफारिश की है। बता दें कि नाटो प्लस में अभी पांच देश शामिल हैं, अगर कमेटी की सिफारिश मंजूर हुई तो भारत इसका छठा सदस्य बन जाएगा। दरअसल कमेटी का मानना है कि चीन अगर ताइवान पर हमला करता है तो सामरिक तौर पर कड़ा जवाब देने के साथ-साथ क्वॉड को भी अपनी भूमिका बढ़ानी होगी। गौरतलब है कि क्वॉड चार देशों का संगठन है जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान हैं। चीन से मुकाबले के लिए अमेरिका को G-7 के देशों के साथ भी सहयोग को और मजबूत करना होगा। कमेटी ने ताइवान पर अपनी पहली रिपोर्ट जारी की हैं। कमेटी की सिफारिशें ऐसे समय में आई हैं जब पीएम मोदी 21 जून से अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे। ‘नाटो प्लस’ में आने से भारत को भी चुनिंदा देशों के जैसे बेहतर अमेरिकी डिफेंस टेक्नोलॉजी मिल पाएगी।

फिलहाल दोनों देशों के बीच को डिफेंस डील नहीं है। लेकिन अमेरिका ने भारत को अहम डिफेंस पार्टनर का दर्जा दिया हुआ है। कमेटी की सिफारिशों के बाद भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने के लिए डिफेंस एक्ट में शामिल कर आधिकारिक रूप से कानून बनाना होगा। उसके बाद सीनेट और अंतिम मंजूरी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से जारी की जाएगी। चयन समिति ने सिफारिश की है कि ‘चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सामरिक प्रतिस्पर्धा जीतने और ताइवान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका को हमारे सहयोगियों और भारत समेत सुरक्षा साझेदारों के साथ संबंध मजबूत करने जरूरी हैं। नाटो प्लस में भारत को शामिल करने से हिंद प्रशात क्षेत्र में CCP की आक्रामकता को रोकने और वैश्विक सुरक्षा मजबूत करने में अमेरिका तथा भारत की करीबी साझेदारी बढ़ेगी।’ बता दें कि नाटो का मूल उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन है। जिसके सदस्य देशों की संख्या 31 है। वहीं अमेरिका ने नाटो प्लस नाम से संगठना बनाया है। इसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इजरायल, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। अमेरिका के इन सदस्य देशों के साथ सामरिक संबंध हैं, जिसका डिफेंस संबंधी लाभ इन देशों को मिलता है।