चीन सीमा से सटे आदि कैलाश धाम तक अब श्रद्धालुओं के लिए एक अच्छी खबर है। बताया जा रहा है के चार किलोमीटर लंबी इस सड़क पर डामरीकरण शुरू हो गया है, और प्रतिकूल मौसम के बावजूद बीआरओ के जवान 11000 फीट की ऊंचाई पर डामरीकरण के कार्य में डटे हुए हैं।
रिपोर्ट:पायल जोशी
चीन सीमा से सटे आदि कैलाश धाम तक अब श्रद्धालुओं के लिए एक अच्छी खबर है। बताया जा रहा है के चार किलोमीटर लंबी इस सड़क पर डामरीकरण शुरू हो गया है, और प्रतिकूल मौसम के बावजूद बीआरओ के जवान 11000 फीट की ऊंचाई पर डामरीकरण के कार्य में डटे हुए हैं।
बताया जा रहा है के नावी के पास ही आदि कैलाश स्थित है, जहां चार किलोमीटर के हिस्से में डामर लगना शुरू हो गया है। पहले सड़क कच्ची होने के कारण अभी तक श्रद्धालुओं को खासी दिक्कतें होती थीं, लेकिन जिसके चलते बीआरओ ने क्षेत्र में होने वाले भारी हिमपात से पहले सड़क पर डामरीकरण पूरा करने का लक्ष्य रखा है, इसके लिए जवान जुटे हुए है।
दरअसल तीखी हवाओं के चलते मौसम प्रतिकूल बना हुआ है, जिसके कारण जवानों को दिन में पांच घंटे का समय ही डामरीकरण के लिए मिल पा रहा है। दुरुस्त सड़क से स्थानीय ग्रामीणों के साथ ही क्षेत्र में तैनात जवानों को भी फायदा मिलेगा।
बता दें के ज्यादातर लोग कैलाश मानसरोवर के बारे में ही जानते हैं, लेकिन आदि कैलाश को भी कैलाश का ही दर्जा प्राप्त है। इसे पंच कैलाश में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ जब माता पार्वती को ब्याहने के लिए जा रहे थे तो इसी स्थान पर उन्होंने अपना पड़ाव डाला था। इसी वजह से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलास यात्रा को सबसे पवित्र माना जाता है।
बता दें कि आदि कैलाश उत्तराखंड राज्य में तिब्बत सीमा के करीब स्थित है, और आदि कैलाश का स्वरूप भी कैलाश मानसरोवर जैसा ही है। बताया जा रहा है के आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है।