रिपोर्ट- माया सिंह
नई दिल्ली: अघोरी साधुओं को महादेव का परम भक्त माना जाता है । हिंदुओं में कई तरह के साधु-संत होते हैं लेकिन अघोरी साधु सबसे अलग होते हैं । अघोरी माता काली और भगवान शिव के भैरव अवतार को मानते हैं , जिस तरह से भगवान शिव और माता काली मुंडों की माला यानी कपाल धारण करते हैं उसी तरह से अघोरी भी अपने शरीर में भस्म लगाने के साथ मुर्दो का कपाल आभूषण के रूप में गले में पहनते हैं ।
माना जाता है कि पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाने के लिए वे ज्यादतर समय भगवान शिव के ध्यान में लीन रहते हैं , इसलिए दिन के उजाले में उनका दर्शन करना दुर्लभ होता है । सुनकर आपको हैरानी होगी कि भगवान को प्रसन्न करने का तरीका उनका बिल्कुल अलग होता है । एक और जहां हम पवित्रता और शुध्दि में भगवान को खोजते हैं वहीं दूसरी ओर वे मानते हैं कि गंदगी में पवित्रता को तलाशना ही ईश्वर की प्राप्ति है ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अघोरियों को मृत्यु का कोई भय नहीं है. ऐसा माना जाता है कि अक्सर वे मुर्दों के साथ खाना खाते हैं, साथ सोते हैं और कभी-कभी मृतकों के साथ संभोग भी करते हैं ।
इतना ही नहीं ये अपना भुख मिटाने के लिए शवों के कच्चे मांस खाने के साथ , कचरा पात्र में डाला खाना और मल-मूत्र भी खाते हैं । इसके पीछे उनका अपना तर्क है कि इससे अंहकार का नाश होता है और सुंदरता का मानवीय नजरिया हटता है , इसलिए भगवान शिव को पाने के लिये अघोरी जीवन जीना आवश्यक है ।
अघोरी अपने-आप को भांग और गंजा की सेवन करने से कभी नहीं रोकते उनका कहना है कि महादेव को जितना प्रसन्न करेंगे उतना ही उनकी शक्ति बढ़ती है ।