ताइवान पर चीन और अमेरिका की नोकझोक बढ़ गई है। इसने कई भारतीय कंपनियों की परेशानी बढ़ी दी है। इनमें खासतौर से वे कंपनियां शामिल हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की मैन्यूफैक्चरिंग से जुड़ी हैं। कोरोना की महामारी के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पहले ही सेमीकंडक्टर की किल्लत है।
अब अमेरिका और चीन जिस तरह ताइवान पर आमने-सामने आ गए हैं, उसने चिंता और बढ़ा दी है। ताइवान चिप की मैन्यूफैक्चरिंग करने वाला प्रमुख देश है। खास बात यह है कि वह दुनिया में सबसे आधुनिक चिप की सप्लाई करता है। दुनिया की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की खपत पूरी करने में इसकी हिस्सेदारी 9 फीसदी है। चीन न केवल निर्माण बल्कि खपत के लिहाज से बड़ा देश है।
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती टेंशन पूरी दुनिया में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की सप्लाई पर असर डाल सकती है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। अगर ऐसा होता है तो मोबाइल, टीवी, लैपटॉप से लेकर तमाम इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की कीमतों पर असर पड़ सकता है
पिछले दो साल से सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री किल्लत का सामना कर रही है। ताइवान पर अमेरिका और चीन के तेवर से इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बनाने वाली भारतीय कंपनियों की समस्या और बढ़ गई है। यह पूरा घटनाक्रम ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर डाल सकता है। इसकी वजह को समझने की कोशिश करते हैं।
ताइवान सेमीकंडक्टर या यूं कहें कि दुनिया की चिप खपत को पूरा करने वाले प्रमुख देशों में है। अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोप भी इसकी मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले खिलाड़ियों में शामिल हैं। दुनिया में चिप बनाने वाली जितनी कंपनियां हैं, उनमें से 9 फीसदी का मुख्यालय ताइवान में है।
अमेरिका की हिस्सेदारी 33 फीसदी और चीन की 26 फीसदी है। खपत के लिहाज से देखें तो अमेरिका 25 फीसदी के साथ पहले नंबर पर है। इसके बाद चीन आता है। दुनिया की कुल खपत में उसकी हिस्सेदारी 24 फीसदी है। यूरोप 20 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर है। दक्षिण कोरिया और जापान की खपत 6-6 फीसदी है।
देश में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनियां चिप के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर हैं। यह पूरा घटनाक्रम इस उद्योग की संवेदनशीलता को दिखाता है। केंद्र सरकार ने देश में सेमीकंडक्टर फैब और डिस्प्ले फैब बनाने करने के लिए दिसंबर 2021 में 76,000 करोड़ रुपये के खर्च को मंजूरी दी थी।
इस साल फरवरी में उसे आवेदन भी मिले। हालांकि, आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय के इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन से अब तक आवेदनों को मंजूरी नहीं मिल पाई है।